YANTRA SIDDHI BY RADHA KRISHNA SHRIMALI (DP)
Description
लेखकीय
मैं à¤à¤• बार पà¥à¤¨à¤ƒ पाठक-पाठकों के सामने हू। মापका सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ और ममातà¥à¤¯ मेरे मेथन की विवशता बन गई है। पà¥à¤°à¤¥à¤® मंतà¥à¤° साधना को आपने सहरà¥à¤· सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया है। फलसà¥à¤µà¤°à¥‚पः पà¥à¤¨à¤ƒ विशेष पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ रूप में देते हà¥à¤ कà¥à¤› पृषà¥à¤ और सौंप रहा हे निकी सफलता और असफलता के निरà¥à¤£à¤¯ का à¤à¤¾à¤° पाठकों पर है। इस पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• के जीवन में कà¥à¤› परेशानियाà¤-बाधाà¤à¤ आती रही है पर à¤à¤¾à¤ˆ गà¥à¤²à¤¶à¤¨ जी हिमà¥à¤®à¤¤ देते रहे, अनà¥à¤¤à¤¤à¤ƒ वे ही पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— दिये हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ में हर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से जीवन में उतार चà¥à¤•à¤¾ हूà¤à¥¤ सफलता पर शतशः विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ है। बड़ी विकट सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ आा जाती है जब सांसारिकता य ततà¥à¤¸à¤®à¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥€
विपदाà¤à¤‚ कारà¥à¤¯ के कà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ में बाधा बन जाती हैं डेरे-की डाक, लोगों से मिलना-जà¥à¤²à¤¨à¤¾, निरनà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤à¤¾à¤¸, घर-गृहसà¥à¤¥à¥€ का कारà¥à¤¯, निरनà¥à¤¤à¤° अनà¥à¤·à¥à¤ ान व करà¥à¤®à¤•à¤¾à¤£à¥à¤¡ के कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के मधà¥à¤¯ समय निकाल कर लिखना कितना कठिन है, यह में ही जानता हूà¤à¥¤ मापने के मधà¥à¤¯ में विचरता हूà¤, घूमता हूà¤, सोचता हूठà¤à¤¾à¤ªà¤•à¥‡ कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚, विपतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, दà¥à¤ƒà¤–ों, अà¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ को समà¤à¤¤à¤¾ हूà¤, पाता हूà¤, और तब सचमà¥à¤š विचलित हो जाता हूà¤à¥¤ इस बार अनà¥à¤¤à¤¤à¤ƒ द निशà¥à¤šà¤¯ कर लिया कि मैं कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡ पृषà¥à¤ पाठकों को दू जिससे ये सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अपना हित-साधन कर सकें, आतà¥à¤®-कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ कर सके। मैं तब और परेशान हो जाता हूठजब यह सà¥à¤¨à¤¤à¤¾ हूठकि अमà¥à¤•-अमà¥à¤• जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·-तानà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤• ने मà¥à¤à¥‡ उग लिया या कि धोखा दिया या कि पूरा वà¥à¤¯à¤¯ करने पर à¤à¥€ मेरा कारà¥à¤¯ नहीं हà¥à¤†à¥¤ मै आपके दà¥à¤– में, विपतà¥à¤¤à¤¿ में साथ हूà¤à¥¤ मैं आपके कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ में सहायक हà¥à¤à¥¤ आपको à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ धनी, सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥-सà¥à¤–ी बनाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करेगा।
मैं मानता हूठकरà¥à¤®à¤«à¤² को आपको à¤à¥€ करà¥à¤® ही करने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ दूंगा। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ बामय में दà¥à¤°à¥à¤²à¤ मानव देश की सारà¥à¤¥à¤•à¤¤à¤¾ à¤à¥‹à¤— में है, सà¥à¤µ को आतà¥à¤® बनाने में है। यनà¥à¤¤à¥à¤° à¤à¥Œà¤° मनà¥à¤¤à¥à¤° à¤à¤¸à¥€ अकà¥à¤·à¤¯ निधियाठहैं जिनसे हम सब कà¥à¤¯à¤¾ पा सकते हैं । इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लिद कर हम à¤à¤¨à¥‹à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤¤ फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकते है। फलतः यह पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• आपके मामने है।
à¤à¤• निवेदन पाठकों से और है। निराश न हो। जहाठसमसà¥à¤¯à¤¾ आये, लेघक सें पतà¥à¤°-वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करें या पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· मिलकर समसà¥à¤¯à¤¾ का हल हà¥à¤‚डी। उतà¥à¤¤à¤° देने में मैं हरà¥à¤· अनà¥à¤à¤µ करेगा-घर के दरवाजे चौबीसों घणà¥à¤Ÿà¥‡ [धà¥à¤¨à¥‡] हैं, आये! मिलं। मिलकर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ होगी।
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