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Description

लेखकों की ओर से

विश्व में सभी जीव अपना आवास बनाते हैं किन्तु भवन निर्माण करते समय वास्तु शास्त्र की अज्ञानता के कारण भवन निर्माण में कुछ अशुभ तत्वों का समावेश हो जाता है जिससे गृह निर्माण कर्ता को विभिन्न प्रकार के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, यहाँ तक कि जीवन मृत्यु जैसे कष्टों का सामना करना पड़ता है।

इन काशी से बचने के लिए हमारे पूर्व आचार्यों ने एक ऐसा शास्त्र तैयार किया जिसमें प्रकृति की अनमोल देन सूर्य की किरणें, हवा का रुख, पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति आदि का प्रयोग कर एवं ज्योतिष के आधार पर शुभाशुभ फल की प्राप्ति एवं दिशाओं के अनुसार कक्षों का निर्माण करने को संपूर्ण जानकारी दी गई इसी शास्त्र को वास्तु शास्त्र कहा गया। अर्धात प्रकृति के सोतों के साथ मनुष्य का सामंजस्य ही वास्तु शास्त्र है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक द्वय द्वारा वास्तु शास्त्र के विभिन्न पहलुओं पर आधुनिक तरीके से सरल एवं सुपठनीय भाषा में दिशा ज्ञान, भूमि का चयन, शिलान्यास, विभिन्न कक्षो जैसे रसोई घर का निर्माण आग्नेय कोण में होना चाहिए क्योंकि अग्नि संबंधी कार्य यदि अग्नि कोण में होगें तो

प्राकृतिक ऊर्जा का उपयोग होगा और गैस व श्रम की बचत होगी, आदि

कक्षों के बारे में पूर्ण विवरण दिया गया है। साथ ही विभिन्न व्यवसायों

जैसे होटल, सिनेमा, फाउन्ड्रीज, नर्सिंग होम, इलैक्ट्रानिक्स आयटम के लिये

किस प्रकार का भूखण्ड क्रय करें यह भी बहुत आसान तरीके से समझाने

का प्रयास किया गया है। आशा है उपरोक्त पुस्तक भवन निर्माण आर्किटेक्ट एवं जनसामान्य के निजी व्यापारिक जीवन में रहने की एक शांतिपूर्ण लाभप्रदायिनी कड़ी होगी। निष्कटक आनंद पूर्ण जीवन के लिये वास्तु शास्त्र के सूत्रों के आधार पर भवन निर्माण कीजिये।

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