TANDAV KAAL SARP

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Description

ज्योतिष शास्त्र में योग का अर्थ उस स्थिति से है, जब जन्मांग के किसी राशि में एक से अधिक ग्रह पाए जाएं। जब राहु व केतु कभी एक.साथ हो ही नहीं सकते तो काल (राहु) और सर्प (केतु) का योग कैसे हो सकता है? राहु-केतु छाया ग्रह हैं, अत: छाया ग्रहों के बीच सभी ग्रह कैसे आ सकते हैं? और कैसे ये छाया ग्रह सभी ग्रहों की शुभता समाप्त कर सकते हैं? जनसामान्य की भ्रांतियों को समाप्त करने हेतु अपने जीवन के अनुसंधानों का संकलन प्रस्तुत किया है। साथ ही पुस्तक में फेंगशुई की आधारहीनता तथा अवैज्ञानिकता

के बारे में भी प्रकाशक डाला है। प्रस्तुत पुस्तक निश्चय ही सामान्य जनमानस को कालसर्प योग की सच्ची जानकारी देते हुए इस प्रांत से दूर कराएगी।

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