Surya Dasha Phaldeepika by Mridula trivedi/ T.P.Trivedi [AP]

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Description

पुरोवाक्

ज्योतिष विज्ञान की मात्रा एवं समय की सत्ता के मध्य निर्मित होने वाले समीकरण की स्वर्णमण्डित शिला ही दशाफल दीपिका का सबलता, प्रबलतम पथ है जिसका रहस्य भारतीय ऋषि-मनीषियों, मुनियों और महर्षियों ने अपनी योग साधना के आधार पर समस्त मानवता के कल्याण हेतु समय-समय पर उद्घाटित किया था। दिन, पक्ष, मास, ऋतुएँ और वर्ष व्यतीत होते चले गये एवं उसके साथ साई ज्योतिष विज्ञान की प्रमाणिकता, सत्यता और सार्थकता की संसिद्धि भी होती वली गई तथा समय के परिवर्तन के साथ-साथ ज्योतिष विज्ञान के सूत्रों और सिद्धान्तों का परिमार्जन तथा संशोधन होता चला गया। ज्योतिर्विदों और साहित्यकारों के मध्य बार-बार शास्वार्थ हुआ कि ज्योतिष विज्ञान है या यह एक शास्त्र है। इस संदर्भ में हमारा स्पष्ट मत है कि ज्योतिष, भौतिक विज्ञान या रसायन विज्ञान के समतुल्य नहीं है परन्तु ज्योतिष, जीव-विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, गृह विज्ञान आदि की ही भांति एक विज्ञान है जिसे अन्य ज्योतिषियों के साथ-साथ आधुनिक ज्योतिष विज्ञान के पितामह डा. बी.बी. रामन ने भी बार-बार सिद्ध किया है। नारद संहिता में अंकित श्लोक ध्यातव्य है

सिद्धान्त संहिता होरा रूपं स्कंध त्रयात्मक । वेदस्य निर्मलं चक्षुः ज्योतिष शास्त्र मुत्तमम् ।।

अर्थात् ज्योतिष के तीन अंग हैं-1. गणित, 2. संहिता, 3. होरा होरा के दो भाग हैं-1. फलित एवं 2. मुहूर्त। महर्षि वराहमिहिर ने ज्योतिष शास्त्र के इन तीनों अंगों पर पृथक्-पृथक् ग्रंयों की संरचना की है जिन्हें पंचसिद्धान्तिका, वृहद्संहिता एवं वृहद जातक नामों से शीर्षक क्या है ये तीनों शक्तियों ज्योतिष शास्त्र की तीन आधारशिलाएँ हैं, परन्तु प्रेम या संशय की स्थिति में महर्षि पराशरकृत वृहदू्

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