SHATPANCHASHIKA GRANTH BY Dr. BHOJRAJ DWIVEDI (DP)

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विषय प्रवेश

प्रश्न विद्या का लक्षण व स्वरूप

प्रश्न विद्या ज्योतिष शास्त्र की सर्वाधिक चमत्कारी विद्याओं में से एक है। प्रश्नकर्ता की जिज्ञासा, इच्छा, उत्कंठा, शंका या चिन्ता का समाधान इस शास्त्र में जन्मपत्री आदि की लम्बी-चौड़ी गणित के बिना ही किया जाता है। ज्योतिष संबंधी कुछ बातों की जिज्ञासाओं का समाधान संहिता ग्रंथ, जातकग्रंथ व जन्मपत्री नहीं कर पाती। यथा-चोरी गई वस्तु मिलेगी या नहीं? वर्षा होगी या नहीं? कोई वस्तु मिलेगी या नहीं? कहां गई ? चोर कौन है ? इत्यादि। इन सबका समाधान केवल प्रश्न-ज्योतिष के पास ही है फिर जिन्हें अपना सही जन्म समय, जन्म तारीख व जन्म स्थान का ज्ञान नहीं है वे लोग प्रश्नकुण्डली के माध्यम से जन्मपत्री बना देते हैं। इसलिये दैनिक लोक व्यवहार में प्रश्न ज्योतिष का बड़ा भारी महत्त्व है। प्रश्न-कुण्डली द्वारा वर्षा ज्ञान एक चमत्कारी प्रकरण है। इस प्रकरण में पृथुयश ने प्रश्न-कुण्डली में स्थित ग्रहों के सूक्ष्म गतिविधियों का जहां अन्वेषण किया है, वहीं वर्षा ज्ञान को पशु-पक्षियों के नाखून से भी जोड़ दिया है। पृच्छक की चेष्टा एवं हाव-भाव के साथ-साथ आकाशीय परिवेश, चन्द्रमा के जलकुण्ड एवं चन्द्र वलय पर भी विचार किया गया है। इसी संदर्भ में पृथुयश ने संतान प्रकरण पर भी चिन्तन किया है। गर्भ होगा या नहीं? संतान कितनी होगी? किस नक्षत्र में होगी? इस विषय को काल पुरुष के संदर्भ में आंका गया है।

प्रश्नकर्ता क्या एवं किस तरह भोजन करके आया है ? इस पर भी पृथुयश ने व्यापक चिन्तन करके प्रश्न विद्या के तत्काल चमत्कारी पक्ष को अधिक परिष्कृत किया है। इस प्रकार से तत्काल प्रभावित करने वाले एवं हाथोंहाथ फलादेश को सत्यता-सिद्ध करने वाले प्रयोग फलित ज्योतिष में पहली बार वराह मिहिर ने प्रारम्भ किये । यद्यपि वर्षा शकुन, मौसम विज्ञान, ग्रह-नक्षत्र जन्य स्थिति, आकाशीय परिवेश एवं पशु-पक्षी जन्य वर्षा शकुन पर पराह-मिहिर ने अलग से बहुत सारी सामग्री लिखी है। 

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