SHANI DASHA PHALDEEPIKA

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Description

शनि दशा फलदीपिका हमारे शीर्ष स्व ज्योतिर्विद् श्री टी.पी. त्रिवेदी के मुदीर्य, मन मंथन का नवनीत है। उन्होंने तक्षाधिक जातकों के जननांगों अनुशीतन और प्रायोगिक अन्य पण करके इस पुहतु ग्रंथ का प्रणयन किया है तथा इसके माध्यम से एक कन्या सैद्धान्तिकी निर्मित की है।

इसके पूर्व भी श्री त्रिवेदी 'रिटर्न : द टाइगर', 'शनि शर्मन', 'शनि संरिता आदि प्रस्तुत-ग्रन्थों और शत-सर्वाधिक शोध आलेखों के माध्यम से शनि की अन्तर्दशाओं, उसकी द्वादश राशिगत स्थितियों, उसकी विभिन्न आकृतियों-प्रवृत्तियों, उसके वर्ण, वाहन, दृष्टि पल, उत्पत्ति और कारक तत्वों पर सतर्क विमर्श करते रहे हैं। इस ग्रन्थ की विशिष्टता, बल्कि अनन्या यह है कि यह जितना शास्वानुमोदित

है, उतना ही व्यावहारिक अनुभवों, दैनंदिन अभ्यासों और अनुसंधानों पर आधारित

है। यह श्री त्रिवेदी की चार दशकों की साधना का सुफल है। निस्कंदेह पाह उनके

बहुआयामी चिंतन-जनुचिंतन से निस्सृत है। इसमें दर्शाता निर्धारण, सिद्धान्त का

निर्वचन ही नहीं किया गया है, प्रत्युत् जातक की महादशा एवं अन्तर्दशा के शुभाशुभ फलों की अनुप्रयोगात्मक संसिद्धि (फलश्रुति) भी अन्तर्हित की गयी है। वस्तुतः शनि अनेकानेक दुर्भेय रहस्यों का पुत्र है। इससे भौतिक प्रपथ के कोटि-कोटि जातक उपकृत अथवा संत्रस्त हैं। त्रिवेदी जी ने अष्टोत्तरी, विीतरी महादशा, योगिनी एवं गोबर दशा के अनुरूप शनि विषयक अनेक गुढ़, दुस्साध्य ताया जटिल समस्याओं का निदान-समाधान यहाँ प्रस्तुत किया है। उनकी विशिष्ट तथा नितांत निजी स्थापनाएं शनि के केन्द्रगत, त्रिकोणस्थ, उपचय स्थानगत, शिक् मावस्य अस्तित्व से और उसके इष्ट-अनिष्ट प्रतिफल से सांसद हैं।

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