PUKHRAJ BY KAULACHARYA JAGDISH SHARMA [HINDI] (DP)

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Description

प्राक्कथन

रत्न उन दुर्लभ पुष्पों की भाति हैं जो न कभी मुरझाते हैं और न ही भी कुम्हलाते हैं, वे सदैव चित्ताकर्षक व सम्मोहक होते हैं। पुष्यों को भाति सुधित न होने के बावजूद भी ये तन-मन को देदीप्यमान करते हैं तथा अधातु ऊर्जाओं के दाता व शक्ति प्रदाता होते हैं।

भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं, संस्कारों, संस्कृतियों ने संपूर्ण विश्व को अपने चिंतन, आलौकिक दैविक आपदाओं से चमत्कृत किया है। इसकी भौतिक संपदाओं की चमक-दमक से संपूर्ण विश्व चकाचौंध हो रहा है। हमारे र्नों ने सदैव अपनी उपयोगिताओं के कारण प्रसिद्धि पाई है।

पारदर्शिता, अल्प पारदर्शिता, पारदर्शिता, रंग विहीनता आकर्षकता, अनाकर्षकता, कठोरता आदि रत्नों के विभाजन की विभिन्न श्रेणियां हैं। अपर्याप्त और दुर्लभ वस्तुओं के संग्रह की लालसा मानव-मन में सदैव विद्यमान रहती है, इसीलिए आसानी से प्राप्य, सुलभ वस्तुओं, रत्नों आदि के प्रति उसका आकर्षण समाप्त हो जाता है। अतः रत्नों की दुर्लभता भी उसका विशेष गुण माना जाता है। इसके अतिरिक्त रत्नों के दो और विशेष गुण हैं- प्रथम कठोरता व द्वितीय चित्ताकर्षकता। रत्न धारण करने की प्रथा अत्यंत प्राचीन तो है ही, साथ ही

लाभकारी भी है। जनमानस के पटल पर रत्नों के विषय में अनेक भर्तियां हैं जिस कारण समाज का एक बड़ा वर्ग इसके लाभों से सदैव हो वचित रहा है। इसी अज्ञानता वश इसका प्रभुत्व एक समुदाय विशेष के हाथों सौमित रह गया है। कब खरीदें, कहां से खरीदें, कैसे बनवाएं, कब और कैसे पहचाने? असली है अथवा नकली? क्या दूसरे का उतारा हुआ रत्न फलदायी होगा?

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