Prashna Marga (Vol 1& 2) by Jagnatha Bashin [RP]

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Description

अवतरणिका

प्रश्न-शास फलित ज्योतिष का वह महत्वपूर्ण अंग है जिसमें जन्म पत्र वर्षफल जैसी लंबी डी गणित के बिना मात्र प्रश्न कुंडली के आधार पर पृष्णक के समस्त प्रश्नों का पदार्थ फल बताया जाता है। इस शास्त्र का क्रमबद्ध इतिहास हमें वराहमिहिर समय से मिलता है। यद्यपि इससे पूर्वव्त गन्यों में भी प्रश्नशास्त्र के आधारभूत सिद्धांतों की चर्चा की गई है-विशेषत संहिता ग्रन्थों में प्रश्न विद्या या प्रश्न शास्त्र का एक अध्याय में समावेश किया गया है। तथापि यह शास्त्र आचार्य वराहमिहिर के समय में पूर्ण विकसित होकर स्वतत्र कूप से विद्वान समाज में आदर प्राप्त कर चुका था। वराहमिहिर के प्रसिद्ध प्रश्न गंध दैवज्ञवल्लभा से इस शास्त्र के विकास की एक परम्प शुरू हुई और उनके पुत्र श्री पृथुपशा एवं आचार्य भट्टोत्पल ने क्रमशः पंचाशिका एवं प्रशासन की रना से इस परम्परा को आगे बढाया। प्रश्न-शास्त्र में सैकड़ों मौलिक ग्रन्थों का एक भण्डार दिखलाई

देता है, जिनमें विविध प्रश्नों का शास्त्रीय विवेधन करने के लिए अनेक उपयोगी सिद्धान्तों का व्याख्यान दिया गया. किन्तु ये सभी लघुकाप-ग्रन्थ दैनिक जीवन में घटित होने वाली घटनाओं या उनसे सम्बन्धी प्रश्नों का उतने विस्तार से विदेचन नहीं कर पाते, जितनी विस्तृत जानकारी फलादेश करने वाले ज्योतिषी के लिए अपेक्षित होती है। प्रश्न मार्ग हमारे दैनंदिन जीवन से सम्बन्धित समस्त प्रश्नों का विस्तृत एवं शास्त्रीय विवेचन करता आ उक्त अभाव की पूर्ति करता है ।

३२ अध्यायों में विभक्त इस प्रश्न मार्ग में आराम के ७ अध्यायों में प्रश्न-शास्त्र के आधारभूत सिद्धांतों का शास्त्रीय विवेचन तथा बाद के अन्य अध्यायों में आयु निर्णय मृत्यु काल का विचार रोग निर्णय, रोग शान्ति के उपाय, विवाह एवं सन्तति प्रश्न, मेलापक, गोचर फल, कर्म विपाक, देव प्रश्न, राज प्रश्न, लाभ-हानि निर्णय, जय-पराजय विचार, वर्षा प्रश्न, यात्रा विचार, रति प्रश्न, नष्ट प्रश्न, स्वप्न विचार एवं अष्टक वर्ग जैसे प्राय सभी उपयोगी विषयों का सर्वांगपूर्ण विवेचन किया गया है। इस सच की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें प्रत्येक प्रश्न के समस्त पहलुओं का विस्तार के साथ विचार किया गया है। उदाहरणार्थ

रोग प्रश्न की लीजिए। प्रश्न शास्त्र या जातक शास्त्र के अन्य ग्रन्थों रोग का निश्चय करने के लिए कतिपय श्लोकों में संक्षेप में कुछ योगों का वर्णन मिलता है जबकि इस गुना में इस प्रश्न का विचार करते समय रोग, रोगों के भेद रोग का साध्य या असाध्य होना, रोग का प्रारम्भ और समापन रोग के कारण, रोग से मृत्यु या मुक्ति और रोग शान्ति के उपाय आदि विविध पूरक प्रश्नों का शास्त्रीय रीति से विचार किया गया है। विस्तृत विवेचन की यही शैली में आयु निर्णय विवात विचार, सन्तान विचार, लाभ हानि, जय-पराजय आदि अन्य प्रश्नों के व्याख्यान में भी दिखाई देती है

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