Prasava Chintamani (Astrologic Embryology) By Acharya Mukund Daivagnya [RP]

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Description

संपादकीय

माता के गर्भ में पल रहा एक-दो अणुओं का समूह चंद महीनों में सुश-शर म, सफेद बाल-मानव कैसे बन जाता है ? जानता है कोई कि वह मन्ना बनेगा माली ? आता है कोई कि वह अपने जन्मदाताओं की, बल्कि संबधियों तक को किस्मत पलटने आया है ? और जानता है कोई कि वह जमीन और आसमान के कुलाने एक करने आया है, या फिर अरबों-खरबों अणुओं की तरह बह भी इस कहती-घुमड़ती दुनिया में लापता होने आया है ?

प्रसव या जन्म के सम्बन्ध में ऐसे सभी प्रश्नों का उत्तर ज्योतिष की इस पुस्तक में उसी प्रकार तत्काल मिलता है जिस प्रकार चिन्तामणि रत्न से मनोवांछित बस्तु मिलती है, अत: इस पुस्तक का प्रसव-चिंतामणि नाम सार्थक है। गडवाल के समीप समनाम में 18878 में जन्म ले कर 1979 ई० में अन्तिम सांस लेने तक अनेक प्राणियों की रचना करके ज्योतिषाचार्यों को चम्कृत करने वाले आचार्य मुकुन्द ईयश ने 145 संस्कृत श्लोकों का बार प्रकरणों में संकलन किया था। इसे और भी संभोग-पूर्ण बनाने के लिए मैंने कहीं के प्रन्य अयोतिष स्य से 38 श्लोक और संकलित करके उन्हें दस प्रकारों में पुनर्नियोजित किया । इस पुस्तके के संपादन का यह एक पक्ष है।

अतिरिक्त संकलन द्वारा श्लोकों की संख्या में वृद्धि के साथ उनके क्रम में भी परिवर्तन किया है जिससे विषय का विशेषण और भी व्यावहारिक तथा बैज्ञानिक बन गया है। संस्कृत और हिन्दी दोनों में शीर्षकों के संयोजन से विषय को दुहिता कम हुई है और वह रोचक भी बन पड़ा है। इस पुस्तक में प्रतिपादित सिद्धान्तों की पुष्टि के लिए स्थान-स्थान पर अन्य ग्रहों से दिये गये उदरणों में वृद्धि की गयी है। प्रत्येक श्लोक के छन्द के उल्लेख से उनके सस्वर पाठ में सुविधा होगी, ज्योतिष के सोने से काव्य की गन्ध बिखरेगी। संपादन का यह दूसरा पक्ष है।

गंधा का तीसरा पक्ष है इसकी विस्तृत प्रस्तावना जो इस विषय के भूत भविष्य का विश्लेषण करती है। गर्भाधान से लेकर अंतिम संस्कार तक की

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