Neelam [hindi] by K Jagadish Sharma [MiscP]
Description
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नौ रतà¥â€à¤¨à¥‹à¤‚ में 'नीलम' की पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ सरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¿ है। यही à¤à¤• रतà¥â€à¤¨ है जो ततà¥â€à¤•à¤¾à¤² शà¥à¤à¤¾à¤¶à¥à¤ परिणाम दिलाता है और सà¥â€à¤Ÿà¥‹à¤¨ धारण के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ विशà¥â€à¤µà¤¾à¤¸ बढ़ाता है। नीलम की अंगूठी पहने हà¥à¤ साधारण से साधारण वà¥â€à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ राजा, महाराजा, सेठसाहूकार, नेता, अà¤à¤¿à¤¨à¥‡à¤¤à¤¾, विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ किसी से à¤à¥€ हतपà¥à¤°à¤ नहीं होता। 'नीलम' धारणकरà¥à¤¤à¤¾ को मातà¥à¤° 24 घंटे के à¤à¥€à¤¤à¤° ही अपना पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ दिखा देता है। यदि सूट किया तो कंगाल से राजा बना देता है, यदि सूट नहीं किया तो राजा को कंगाल बनाने में देरी नहीं लगाता।Â
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पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤•à¤¥à¤¨
रल उन दà¥à¤°à¥à¤²à¤ पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ की à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿ हैं जो न कà¤à¥€ मà¥à¤°à¤à¤¾à¤¤à¥‡ हैं और न ही कà¤à¥€ कà¥à¤®à¥à¤¹à¤²à¤¾à¤¤à¥‡ हैं, वे सदैव चितà¥à¤¤à¤¾à¤•à¤°à¥à¤·à¤• व समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤• होते हैं पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ को à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤§à¤¾à¤° न होने के बावजूद à¤à¥€ ये तन-मन को देदीपà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ करते हैं तथा अथाह ऊरà¥à¤œà¤¾à¤“ं के दाता व शकà¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ होते हैं।
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• परंपराओं, संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚, संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने संपूरà¥à¤£ विशà¥à¤µ को अपने चिंतन, अलौकिक दैविक आपदाओं से चमतà¥à¤•à¤¾à¤° किया है। इसकी à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• संपदाओं की चमक-दमक से संपूरà¥à¤£ विशà¥à¤µ चकाचौंध हो रहा है। हमारे रतà¥à¤¨à¥‹à¤‚ ने सदैव अपनी उपयोगिताओं के कारण पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¿ पाई है।
पारदरà¥à¤¶à¤¿à¤¤à¤¾, अलà¥à¤ª पारदरà¥à¤¶à¤¿à¤¤à¤¾, पारदरà¥à¤¶à¤¿à¤¤à¤¾, रंग विहीनता आकरà¥à¤·à¤•à¤¤à¤¾, अनाकरà¥à¤·à¤•à¤¤à¤¾, कठोरता आदि रतà¥à¤¨à¥‹à¤‚ के विà¤à¤¾à¤œà¤¨ की विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ शà¥à¤°à¥‡à¤£à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ हैं। परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ और दà¥à¤°à¥à¤²à¤ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं के संगà¥à¤°à¤¹ की लालसा मानव-मन में सदैव विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ रहती है, इसीलिठआसानी से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¯, सà¥à¤²à¤ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं, रतà¥à¤¨à¥‹à¤‚ आदि के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उसका आकरà¥à¤·à¤£ समापà¥à¤¤ हो जाता है। अतः रतà¥à¤¨à¥‹à¤‚ की दà¥à¤°à¥à¤²à¤à¤¤à¤¾ à¤à¥€ उसका विशेष गà¥à¤£ माना जाता है। इसके अतिरिकà¥à¤¤ रतà¥à¤¨à¥‹à¤‚ के दो और विशेष गà¥à¤£ हैं- पà¥à¤°à¤¥à¤® कठोरता व दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ चितà¥à¤¤à¤¾à¤•à¤°à¥à¤·à¤•à¤¤à¤¾à¥¤
रतà¥à¤¨ धारण करने की पà¥à¤°à¤¥à¤¾ अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ तो है ही, साथ ही लाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ à¤à¥€ है। जनमानस के पटल पर रतà¥à¤¨à¥‹à¤‚ के विषय में अनेक à¤à¥à¤°à¤¾à¤‚तियां हैं जिस कारण समाज का à¤à¤• बड़ा वरà¥à¤— इसके लाà¤à¥‹à¤‚ से सदैव हो वाचित रहा है। इसी अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ वश इसका पà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¥à¤µ à¤à¤• समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ विशेष के हाथों सीमित रह गया है। कब खरीदें, कहां से खरीदें, कैसे बनवाà¤à¤‚, कब और कैसे पहनें? असली है अथवा नकली?
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