Mukhakruti Vigyan By Dr Gauri Shankar Kapoor [RP]

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Description

प्राक्कथन

शिशु रोया। माँ आतुर हो उठे। क्या हो गया मेरे बच्चे को ? अबोध शिशु बोल नहीं सकता। माँ उसका मुखड़ा निहारने लगी। माथे पर सिलवट, आँखों में आँसू, होंठो में कम्पन ठुड्डी पर गड्ढा। यह नन्हे हाथ इधर-उधर पटक रहा मा। पैर चला रहा था। पेट मरोह रहा था। माँ के मुख पर सफलता चमकी। इससे पहले के पेट में दर्द था। मां ने जान लिया। उसी दिन मुखाकृति और शरीर चेष्टाओं का अध्ययन आरम्भ हो गया।

यह किस समय की बात है ? पता नहीं। उस समय इस निरीक्षण-परीक्षण का कोई नाम भी नहीं था। कालान्तर में समुद्र ऋषि के नाम पर इस अध्ययन को सामुद्रिक शास्त्र कहा गया। परवर्ती ज्योतिषियों ने सामुद्रिक ज्ञान को अपने ग्रन्थों में स्थान दिया। केवल मुखाकृति के अवलोकन द्वारा चरित्र-गत विशेषताओं को जान लेने की कला पर स्वतंत्र न्यू लिखे गए।

पश्चिम में ज्ञान का उन्मेष हुआ तो वहाँ के चिन्तक भारत की ओर उन्मुख हुए। तब सामुद्रिक ज्ञान को और भी उनका ध्यान आकर्षित हुआ। उन्होंने व्यक्ति को पहचान करने में इस विद्या का महत्व समझा और सम्यक् अध्ययन किया।

इस विषय को नाम भी दे डाला फिजियोनोमी (physiognomy). कुछ लेखकों ने न केवल मुखाकृति पर अपना ध्यान केन्द्रित किया बल्कि चेहरे के प्रत्येक भाग यथा ललाट, केश-रेखा १. आँख, कान होठ गाल जबड़ा चिबुक आदि का सूक्ष्मता से अवलोकन किया। इसी के आधार पर व्यक्ति के गुण-दोष और समग्र व्यक्तित्व की पहचान करने की प्रक्रिया आरम्भ हुई। मनुष्य के मन में क्षणे-क्षणे उमड़ती हुई भावनाएँ उसके मुख पर प्रतिबिम्बित होती रहती हैं। मनुष्य अपने मनोवेगों को वाणी से प्रकट न करे तो भी उसकी मुखाकृति सब कुछ बयान कर देती है

मजबूरियों ने छीन ली. मुझ से अगर जुबा. आँसू कहेंगे दिल के उजड़ने की दास्तां।

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