Mantra Manjri By Mridula Trivedi & T. P. Trivedi [AP]

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Description

पुरोवाक

(तूतिया परिमार्जित एवं पर्वत संस्करण)

हमने भक्ति भावना के भव्य भुवन में त्रिभुवन मोहिनी तिपुर सुन्दरी के स्नेहाशीष के प्रतिफल के रूप में अब तक लगभग 100 वृहद शोध प्रवन्धों की संस्था की है। हमारी लगभग समस्त कृतियों ज्योतिष प्रेमियों, ज्योतिष के प्रखर छात्रों, अनुसंधानकर्ताओं, जित्तू पाठकों और अनेक प्रबुद्ध विद्वानों के मध्य अत्यन्त मोकप्रिय हुई हैं और उनमें से अधिकांश के अनेक परिमार्जित एवं परिवद्धित संस्करण भी प्रकाशित हो चुके हैं यहां पर हमें यह स्वीकार करने में किंचित भी संकोच नहीं है कि हमारे साधना का प्रमुख विषय ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन, मनन, चिंतन और अनुसंधान है। बाल्यकाल से ही हमें ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन के प्रति गहरी अभिरुचि रही है। हमारे पिताजी बंगलौर से पकाशित होने वाली 'द एस्ट्रोलॉजिकल मैगजीन' प्रतिमाह राशिफल पढ़ने के लिए मैंगवाते थे हमें भी अपना राशिफल पढ़ने हेतु कौतूहल जागत होता था। राशिफल के साथ-साथ हमद एस्ट्रोलॉजिकल मैगजीन' में प्रकाशित सरल लेख भी पढ़कर समझने का प्रयास करते थे। इस दिशा में हमारी रुचि का उत्तरोत्तर आवर्धन होता चला गया और हमने ज्योतिष सम्बन्धी क्लिष्ट और जटिल लेखों का अध्ययन भी प्रारम्भ कर दिया। हमारे कटौती ज्योतिष प्रेमियों ने हमारे द्वारा अपने जन्मांग का अध्ययन भी समय-समय पर कराया, तो इस विषय में हमारा आत्मविश्वास सुदृढ़ होता चला गया हमारे

इन सभी मंत्र शक्ति पर केन्द्रित शास्त्रीय ग्रन्थों और लघु कृतियों के अध्ययन के उपरान्त हमारे मन में एक ऐसी कृति की संरचना का विचार आया, जिसमें सभी विषयों पर केन्द्रित तथा सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों से सम्बन्धित मंत्रों का समावेश हो और मंत्र शक्ति के उपयोग का सुगम विधान भी सम्मिलित हो। आम ज्योतिष प्रेमी ओर आस्तिक पाठकगण इसे अपनी नियमित साधना में सम्मिलित करके मंत्र शक्ति से लाभान्वित हो सकें। तथा इसी विचार का निरन्तर मानधन, चिंतन और ममन हमारे मन-मस्तिष्क में चंचल चटुल तरंगें लेकर बार-बार करवट बदलता रहा। अंततः हमने अपने विचारों के विन्दु को सिन्धु के रूप में रूपान्तरित करने का निर्णय किया और तभी मंत्र मंजरी' नामक इस कृति की संरचना सन् 2007 में हुई। इसका प्रथम संस्करण सन् 2010 तक समाप्त हो गया और सन् 2011 के प्रारम्भ में ही मंत्र मंजरी के द्वितीय संस्करण का प्रकाशन सम्पन्न हुआ। समय के अभाव के कारण मंत्र मंजरी के द्वितीय संस्करण के प्रकाशन के समय उसे परिमार्जित और परिवर्द्धित

नहीं किया जा सका। सन् 2011 में मंत्र मंजरी का दूसरा संस्करण भी समाप्त हो गया। मंत्र मंजरी की लोकप्रियता देखते हुए हमने मेसर्स एल्फा पब्लिकेशन के स्वस्थ श्री अमृत लाल जैन से अनुरोध किया कि तृतीय संस्करण का परिमार्जन एवं परिव्द्धन अति आवश्यक है। अतः इस कार्य के पूरा होने तक तृतीय संस्करण का प्रकाशन नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि मंत्र मंजरी के तृतीय परिमार्जित एवं परिव्धित संस्करण के प्रकाशन से पूर्व हमने ज्योतिष प्रेमियों एवं प्रबुद्ध पाठकों की भावनाओं के मर्म का बार-बार आभास किया है एवं उसी के अनुरूप मंत्र मंजरी की सार्थकता, महत्ता, उपयोगिता तथा लोकप्रियता के संवर्धन के उद्देश्य से यथासंभव मंत्रों और स्तोत्रों का संदर्भ प्रस्तुत करने के साथ-साथ उनकी शुद्धता स्पष्टता आदि पर भी

विशेष ध्यान दिया है।

मंत्र मंजरी में सन्निहित मंत्रों के जप से कितने ही निर्धन व्यक्ति आर्थिक रूप से अत्यधिक सम्पन्न हुए और कुछ सामान्य साधक अत्यन्त धनवान हुए। कितने ही बन्द उद्योग चल निकले और कितने ही लोगों के व्यवसाय में उत्तरोत्तर उन्नति और प्रगति होती चली गई। दैहिक विकृतियों, व्याधियों और व्यथाओं के शमन हेतु जो मंत्र प्रयोग मंत्र मंजरी में विद्यमान हैं, उनके अनुसरण से कैंसर और एड्स जैसी असाध्य व्याधियों से ग्रस्त व्यक्ति भी लाभान्वित हुए हैं विद्यार्थियों के समक्ष प्रतियोगिता में सफल होने की चुनौती सदा से विद्यमान है इसलिए उनकी सफलता प्राप्ति हेतु जो मंत्र साधना मंत्र मसूरी में सत्रिहित है, उनका अनुपालन करने से कितने ही विद्यार्थी भारतीय प्रशासनिक सेवा, आई.आई.टी., आई. आई.एम., सी.ए., पी.एम.टी., बैंकिंग आदि से सम्बन्धित प्रतियोगिताओं में सफल हुए हैं। विभिन्न प्रकार के अरिष्ट जीवन को आतंकित, अवरोधित, बावित और असंतुलित करते रहते हैं जिनके समाधान हेतु सटीक मंत्र प्रयोग का संपादन करने से अप्रत्याशित सफलता, लोकप्रियता, सार्थकता तो प्राप्त होती ही है, साथ ही साथ सभी प्रकार के वरिष्ठों का भी निर्मूलन होता है।

शनि की साढ़ेसाती, शनि का ढैया आदि सभी प्राणियों को चितित और व्यक्ति करते हैं। महाकाय, महाकाल, तिमिराकार शनि, आतंक, दुर्दमनीय दारुण दुःखों की व्यथा का पर्याय बन गया है। अतः शनि ग्रह से सम्बन्धित सभी प्रकार के अरिष्टों की शान्ति हेतु कतिपय अनुभूल मंत्र साधनाओं के अनुसरण द्वारा सहयों पाठकगणों का जीवन सुखी हुआ है और उनके जीवन की गति, मंत्ति, प्रगति तीव्रता की और अग्रसर हुई है। उनके जीवन में उत्पन्न होने वाले अक्रोध, विघ्न, बाधा, असफलता, उदासी और निराशा का शमन तब हुआ, जय सहयों पाठकों ने मंत्र मसूरी में उद्धृत मंत्र साधना और जप आदि करने के साथ-साथ शनि के दान आदि का संपादन किया।

मंत्र साधना से पूर्व मंत्र शक्ति किस प्रकार से कार्यान्वित होती है, इसका संज्ञान परमावश्यक है। यहाँ हम आसन पर बैठकर मंत्र जप करते हैं और वहाँ करोड़ों मील दूर ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव शनैः शनैः सकारात्मकता में परिणीत और परिवर्तित होने लगता है। इसका वैज्ञानिक विश्लेषण मंत्र मंजरी के सिद्धान्त खण्ड में किया गया है।

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