Mansik Rogon Ki Grah Chikitsa By Dr. Seema Verma [AP]

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Description

लेखिका का परिचय

डॉ. सीमा वर्मा ने आयुर्वेद महाविद्यालय गुरुकुल कांगड़ी (कानपुर विश्वविद्यालय) से बी.ए.एम.एस. की डिग्री प्राप्त कर, लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग में डिप्लोमा तथा तत्पश्चात लखनऊ विश्वविद्यालय से ज्योतिर्विज्ञान में एम.ए. तथा चिकित्सा ज्योतिष में पी-एच.डी. की डिग्री प्राप्त की और लखनऊ विश्वविद्यालय ज्योतिर्विज्ञान विभाग' में जव्यापन का कार्य कर रही है।

आयुर्वेद के आठ अंग माने गए हैं काय, बाल, ग्रह, साग, शल्य, दृष्टा, जरा तथा वर्षे। इनमें ग्रह चिकित्सा (भूत विद्या) है।

इस भूत विद्या के अन्तर्गत ही चिकित्सा ज्योतिष भी समाविष्ट है किन्तु इस क्षेत्र में प्राचीन ग्रन्थ लगभग अनुपलब्ध है। फलतः यह क्षेत्र आयुर्वेद में भी उपेक्षित-सा रह गया है। इसी कारण लेलिका ने चिकित्सा ज्योतिष में शोच कार्य प्रो. बृजेश कुमार शुक्ल (विभागाच्या ज्योतिर्विज्ञान विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ) के मार्गदर्शन में पूर्ण किया था वर्ष 2008 में लखनऊ विश्वविद्यालय ने लेखिका को चिकित्सा ज्योतिष में पी-एच.डी. की डिग्री प्रदान की। लेखिका ने प्रस्तुत ग्रन्थ में ज्योतिष के सिद्धांतों के वैज्ञानिक पक्षों को उजागर करने का भरपूर प्रयास किया है तथा ज्योतिष के संबंध में जो सामान्य प्रातियाँ प्रचलित है उनका भी तर्कसंगत उत्तर दिया है।

 

अनुक्रम

क्र.सं. अध्याव

विषय प्रवेश

अध्याय-प्रथम 3 अध्याय-द्वितीय

4. अध्याय-तृतीय अध्याय-चतुर्थ

अध्याय-पंचम

9. अध्याय-अष्टम

10. अध्याय-नवम

12. उपाय-एकादश

विवरण

मानसिक रोग तथा जातक शास्त्र के सिद्धांत जातक शास्त्र में मनोरोग विमर्श

उन्माद अपस्मार

अतत्वाभिनिवेश तथा मनोविक्षिप्ति विषाद-अथसाद, अध्ययस्यितचिंतताः अन्तराबन्ध

अ्रम, विभ्रास, अवस्तुयोधन, संविप्रमः स्थिर व्यामोह, दिव्या विश्वास संपर्क मनोनाड़ी दौर्थत्य-मनःआति, मनोग्रन्धि

(दुइ और बाध्यता युक्त मानसिक रोग) वृद्धावस्था जन्य मनोविकार

आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में ज्योतिर्विज्ञान के सिद्धांतों की समीक्षा उपसंहार

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