Manavta ka Ekmatra Mitra Shani By Pt. Ajay Bhambi [DP]
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Description
Pages: 139
कर्मों के फल ईश्वर देता है और माध्यम बनाता है ग्रहों को। विशेष रूप से शनि को अपने गलत कर्मों के फल को व्यक्ति से भुगतवाकर शनि व्यक्ति के मन में इस संसार के सर्वत्र दुखमय होने की भावना बैठाना चाहता है। जिसके फलस्वरूप व्यक्ति के मन में संसार के प्रति विरक्ति की भावना जाग्रत हो जाये क्योंकि इतने लंबे समय तक जब व्यक्ति निरंतर संघर्षरत रहता है और अंत में कुछ प्राप्त भी कर लेता है तब तक वह इतना अधिक थक चुका होता है, टूट चुका होता है कि उसे कुछ प्राप्त करने की प्रसन्नता का अनुभव नहीं होता। सुख और दुख के अनुभव की यही समानता शनि व्यक्ति को देना चाहता है। न दुख के अनुभव की यही समानता शनि व्यक्ति को देना चाहता है। न दुख में विषाद का अनुभव और न सुख में हर्ष का। यही भाव आध्यात्म की और बढ़ने का पहला कदम है और शनि द्वारा व्यक्ति को दिया गया एक सुंदरतम पुरस्कार।
विषय बहुत विस्तृत विषय का सारगर्भित, व्यापक एवं हृदयग्राही वर्णन प्रश्न–उत्तर के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
पं. अजय भाम्बी
विषय बहुत विस्तृत विषय का सारगर्भित, व्यापक एवं हृदयग्राही वर्णन प्रश्न–उत्तर के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
पं. अजय भाम्बी
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