LAGHU PARASARI [AP]

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Description

मार्च पाराशर के चूहे पाराशर होरा शास्त्र' से ज्योतिष प्रेमी अनजान नहीं हैं। कुछ विद्वान तो इस ग्रन्य को ज्योतिष होरा का सन्दर्भ ग्रन्थ, तो जन्य इसे एक पुस्तकीय संग्रहालय कहते हैं। फलित ज्योतिष के गहन अध्ययन के लिए 'लघु पाराशरी' मानी मुख्य प्रवेश है। इसमें पाराशर होरा शास्त्र के विभिन्न सिद्धान्तों और सूत्रों को संक्षेप में

समेटने का सफल प्रयास हुआ है। विशाल ग्रन्थों को संक्षिप्त करने की परम्परा बहुत पुरानी है। भगवद्गीता' व “दुर्गा सप्तशती' की लोकप्रियता पुराणों से बहुत अधिक होने का श्रेय इसके लघु आकार को जाता है।

स्वयं महर्षि पराशर ने योगाध्याय में सभी लग्नों के जातकों के लिए कारक व

मारक ग्रह निश्चित कर, एक बड़ा कार्य मात्र कुछ श्लोकों में सम्पन्न किया है।

सम्भव है, स्वयं महर्षि पाराशर या उनके किसी सुयोग्य शिष्य ने इस लयुकाय किन्तु महत्वपूर्ण कृति की रचना की हो। पंडित मुकुन्द बल्लभ दैवज्ञ की 'उडुदाय प्रदीप तथा डॉ. सुरेश चन्द्र मिश्र की 'लघु पाराशरी' से मुझे पर्याप्त सहायता छाती--में इनका हृदय से आभारी हूँ।

इस ग्रन्य को संज्ञा अध्याय, फत निर्णय अध्याय, योग फल अध्याय, मारक अध्याय तया दशा फल अध्याय में समेटा गया है।

ज्योतिष प्रेमियों की जिज्ञासा शान्ति के लिए अध्याय विस्तार व उदाहरण जोड़ दिए गए हैं। मुझे विश्वास है कि ज्योतिष के छात्रों व विद्वानों में यह कृति लोकप्रिय होगी।

श्री अमृतलाल जैन व उनके पुत्र श्री देवेन्द्र जैन विनोद जैन ने अपने कार्य दल के सहयोग से इस कृति की रूप-सजा की, पांडुलिपि शोधन के कठिन व महत्वपूर्ण कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया-अपनी निष्ठा व धैर्य के लिए, निश्चय ही वे प्रशंसा के पात्र हैं।

अध्याय

1. से अध्याय

विवरण

पृष्ठ

11 मंगलाचरण, 1.2 ग्रन्थ का प्रयोजन, 1.3 नक्षत्र दशा ही मुख्य है, 14 सामान्य चर्चा नहीं, 15 ग्रहों का दृष्टि विचार, 1.6 समीक्षा।

2. फल निर्णय अध्याय

21 त्रिकोणेश सदा शुभ, 2.2 त्रिपुरा के स्वामी अशुभ,

2.3 शुभ ग्रह केन्द्र पिता होने पर शुभ फल नहीं देते,

2.4 द्वितीय व द्वादश भाव के स्वामी साहचर्य या अन्य राशि

का फल देते हैं। उदाहरण-राहु-गुरु में धन लाभ,

25 अष्टमेश का विशेष नियम, 26 केन्द्र अधिकारी और मारकेश होने का दोप, 2.7 कौन ग्रह को योगकारक, 2.8 राहु-केतु का शुभाशुभ निर्णय, उदाहरण-शनि राहु में श्री जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी लगी, 2.9 समीक्षा। अध्याय विस्तार ग्रहों के शुभत्व की मात्रा, ग्रहों का परस्पर सम्बन्ध, ट्रिक भाव या दुष्ट स्थान, त्रिकभाव का विशेष विचार, त्रिपुरा भाव, मारक भाव और मारकेश, विशेष।

3. योगफल अध्याय

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