Kalyan Varma's Jataka Parijata [3 Vol Set] By V. Subramanya Sastri [RP]

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Description

ग्रन्थ-परिचय

प्रस्तुत ग्रन्थ "जातक पारिजात" श्री वैद्यनाथ दीक्षित द्वारा रचित ज्योतिष साहित्य के नये रत्नों में से एक है। 18 अध्यायों में विभक्त प्रस्तुत ग्रन्थ में विद्वान रचनाकार ने निर्दन्द्रूप से पराशर मत का पूर्ण आदर-सम्मान करते हुए अपने नवीन मत एवं अनुभवों को भी सार्थक रूप में प्रस्तुत किया है।

प्रस्तुत ग्रन्थ का पठन "बृहज्जातक" एवं 'सारावली' के मनन करने के पश्चात करना, उच्चता है। बृहज्जातक की आवश्यकता को ध्यान में रखकर कल्याण वर्मा ने सारावली की रचना की। परंतु सारावली में भी कुछ महत्वपूर्ण विषयों के अभाव के कारण ही जातक पारिजात की रचना की गई है। वैद्यनाथ ने मत विवेचन में लकीर का फकीर होने

के स्थान पर अनुभव सिद्ध बातों को खुले हृदय से स्वीकार कया है फलदीपिका जातक भूषण, जातक तत्व, अष्टकवर्ग महानिबंध आदि उच्च कोटि के ग्रन्थों में भी स्थान-स्थान पर इस अद्वितीय ग्रन्थ का महत्व प्रस्तुत होता है।

प्रस्तुत ग्रन्थ में और ग्रह विवेचन, निर्याण विवेचन, स्त्री जातक, विद्या व शिक्षा विचार द्वितीय भाव भी. मांगलिक विचार का अनूठापन, राजयोग भंग का अदभुत विचार आदि अनेक विषयों का खुलासा बहुत ही आत्मविश्वास के साथ ग्रन्थकार ने किया है। जातक पारिजात स्वयं संक्षिप्त लेकिन सारग्राही होते हुए फलित ज्योतिष का उच्च श्रेणी का अनूठा ग्रन्थ है, जो पाठक के हृदय में उठने वाले प्रश्नों का समुचित

समाधान करता है।

यह ग्रन्थ प्रारंभिक अध्ययनकर्ताओ एवं शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी एवं सार्थक सिद्ध होगा।

सम्पूर्ण ग्रन्थ 2 भागों में (अध्याय 18)

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