Jyotish & Roga (Medical Astrology) By J N Bhasin [RP]
Description
दो शब्द
1. इस पुस्तक में कुछ विशेषताएँ रखने का प्रयास किया गया है एक तो यह कि अधिक से अधिक रोगों का ज्योतिष शास्त्र द्वारा विवेचन किया जाए, इसरो इस विवेचन की पुष्टि में जीवन से अनुभूत उदाहरण उपस्थित किए जाएँ जिससे न केवल विषय के समझने में सुविधा रहे, अपितु उस समझ में एक दृढ़ता उत्पन्न हो सके। तीसरे रोगों के विवेचन में दिए हुए योगों को हेतु पूर्वक (Logical) उपस्थित किया जाए ताकि पाठक पुस्तक और स्तनों पर निर्भर म होकर स्वतन्त्र चिन्तन में समर्थ हो सके । विषय से सम्बद्ध श्लोक तो बहुत 1. हैं, परन्तु रोग क्यों और कैसे' का विवेचन ज्योतिष शास्त्र में बहुत योड़ा मिलता है कि किन्हीं ग्रह अथवा ग्रहों आदि द्वारा कोई रोग उत्पन्न ही क्यों
होता है। 2. कुछ बातों पर हमने अधिक बल दिया है और कुछ को एक नवीन इंग से उपस्थित किया है। जैसे महर्षि पराशर उपदिष्ट सुदर्शन के नियम का हमने रोग विचार में व्यापक नीति से उपयोग किया है और हमारा विचार है कि इससे पाठकों को बहुत लाभ होगा। नयीन टंग का प्रयोग हमने राहु तथा केतु की दृष्टि से भी किया है। बहुत थोड़े पाठक राहु तथा केतु की पञ्चम तथा नवम दृष्टि से परिचित हैं। पुनः राहु-केतु किस प्रकार अपना तथा दूसरे ग्रहों का प्रभाव निज दृष्टि द्वारा अन्यत्र डालते हैं इस विशेष नियम का प्रयोग भी बहुत कम विद्यार्थी कर पाते हैं। बहुत-सी गुत्थियों इस दृष्टि पर विचार करने से सुलझ जाती हैं। बहुत से दो, जो अन्यथा छोटे रह जाते हैं इस दृष्टि के
ज्योतिष और रोग
न से सामने आकर अपने फल की ओर निर्देश द्वारा अनिष्ट की निवृति में सहायक होते हैं। इसी प्रकार "ग्रह निज प्रमाण के अतिरिक्त उन ग्रहों का भी प्रभाव ग्रहण करते हैं जो उनकी राशियों में स्थित होते है"। यह एक ऐसा नियम है जो कि लक्षण प्रभाव रखता है और इसका ज्ञान ज्योतिष के पाठकों को कम ही है।
रोग अधिकतर पापी ग्रहों ही के प्रभाव द्वारा उत्पन्न होते हैं कछ रोग ऐसे हैं जो अंगों की स्थानच्युति से उत्पन्न होते हैं। इस 'ध्युति' अववा "पृथकता' के मुख्य कारण शनि, राहु, सूर्य तथा द्वादशेश हैं जैसा कि गर्भपात, हरनिया, नपुंसकता आदि में दृष्टिगोचर होता है और कुछ रोग ऐसे हैं जहाँ अंग की हानि किसी न किसी अंश में होती है जैसे ऑपरेशन द्वारा अथवा दुर्घटना द्वारा अंगों का कट जाना, दृष्टिनाश इत्यादि। 1. इस पुस्तक को साधारण पाठकों की रुचि के अनुकूल तथा उनके
ज्ञान स्तर के अनुरूप बनाने के उद्देश्य से दो अध्याय 'विषय-प्रवेश और
ज्योतिष के कुछ आवश्यक नियम विशेष रूप से समाविष्ट किए गए हैं ताकि साधारण ज्ञान रखने वाले व्यक्ति भी इस देवी शास्त्र से लाभ उठा सकें। यदि आप अपनी जन्म कुंडली अपने सामने रखकर इन अध्यायों की सहायता से उसमें ग्रहों का 'आधिपत्य', 'दृष्टि' आदि देखेंगे तो अवश्य ही ज्योतिष शास्त्र में अधिक पारंगत होंगे। ऐसा हमारा मनीष है।
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