JYOTISH KE MOOL SIDDHANT [VP]

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Description

भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत पुराण अंतर्गत कहा है कि निर्णय लेने में जब भी समस्या उत्पन्न हो तो वेदों एवं शास्त्रों के प्रमाण को सर्वोपरि मानना चाहिये। ऐसे में ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान भी ज्योतिष के प्राचीन मूलभूत ग्रन्थों के माध्यम से लिया जाना चाहिये। आज के युग में देश काल पात्र की समय सीमा के अंतर्गत विद्वानों ने ज्योतिष शास्त्र के मूल सिद्धान्तों में भी परिवर्तन करना आरंभ कर दिया है. ऐसे में सभी को सही जानकारी और मूल सिद्धांतों का उपलब्ध न होना स्वभाविक है। हमारा प्रयास पुनः उन प्राचीन ग्रन्थों के अंतर्गत प्रस्तुत ज्योतिष सिद्धान्तों को उसी रूप में सामान्य जनों के लिये सुलभ करना रहा है, ताकि विषय की जटिलता दैविक संस्कृत भाषा में ही अटक कर न रह जाये। प्रस्तुत पुस्तक में ली गई सामग्री विभिन्न प्राचीन मतों और ग्रन्थों के संदर्भ और टीका के माध्यम से ली गई है। आशा करते हैं कि यह पुस्तक सभी ज्योति प्रेमियों के लिये इस मार्ग को प्रशस्त करने में एक सहाय JYOTISH ME DANT

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