JYOTISH AUR LAXMI YOG KARK LAGNA

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Description

दो शब्द

या देवी सर्वभूतेषु समृद्धि रूपेण सरस्वती। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।

महालक्ष्मी को पनदात्री देवी माना जाता है। आजतक पन का अभिप्राय रुपए, पैसे, डॉलर, डीप, यूरो आदि अनेक मुद्राएं मानी जाती है और जिसके पास जितनी अधिक मात्रा हो वह उतना ही धनपान माना जाता है लेकिन जिस लक्ष्मी की पूजा एवं बाहना भारतीय जनता को होती है उसमें मुद्रा की प्रधानता के साथ तन एवं मन की समृद्धि की चाहना भी होती है। वास्तव में जो व्यक्ति तन-मन पन से संपन्न है, वही लक्ष्मीवान होता है।

देवभूमि भारत, जिसकी मिट्टी का तिलक किया जाता है, जहाँ नदियों को नमन किया जाता है, जहाँ ओंकार की गूंज, मंदिरों शंख ध्वनि और हवन का धुंआ ही नहीं, बल्कि रिम्िम सावन में मेहंदी के बूटे, नवरात्रि में नवदुर्गा की आराधना तो कभी अमावस की काली रात में माटी के दीयों की दीपमालिका झिलमिलाती है। आध्यात्म की इस धरती पर त्यौहारों के अनेक रंग है, लेकिन दीपावली का अलग ही महत्त्व है, यह त्योहार पाँच दिनों के पर्व के साथ पूर्ण होता है और हमें जोड़ता है धन से धर्म तक।

प्रकाश ज्ञान का द्योतक है और दीप साधना का प्रतीक ज्ञान और साधना के द्वारा ही जीवन और संस्कृति में शील, सौन्दर्य एवं समृद्धि की अधिष्ठात्री माँ महालक्ष्मी की प्रतिष्ठा की जाती है। प्रज्वलित दीप मालिकाएं सजग साधना की धोतक है। हमारी कामना यही होती है कि हमारे जीवन का पल-पल इस दीप साधना के आलोक से प्रकाशित हो और हमारा मन एवं जीवन लक्ष्मी की विभूति से परिपूर्ण हो। यही लक्ष्मी पूजन का लक्ष्य है और धर्म उस साधना

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