Jyotish Aur Dampatya Jeevan By Krishna Kumar [AP]

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Description

[14:24, 10/7/2020] Raahul Lakhera: अपनी बात

ये पुस्तक कैसे बनी इसके पीछे एक रोचक कथा है वर्ष 1990 के दशक में जब अपने बच्चों के विवाह के लिए पंडितों से संपर्क साधा तो अनेक विद्वानो से कुंडली विश्लेषण के महत्त्वपूर्ण सूत्र सीखने का अवसर मिला। एक मित्र ने एक कुडली मेलापक की विधि स्पष्ट की तो अन्य मित्रों ने दामाद य पुत्र की कुंडली में देखने के लिए विशेष बाते भी नीट करा

दी। लगभग 60-70 पृष्ठ का रजिस्टर बच्चों के विवाह के विवरण से भर

गए।

बाद में जब पुस्तक लिखने का ननुआ तब अन्य विषय अधिक महत्वपूर्ण जान पड़े। अत पडवर्ग फलम् षड्बल रहस्य, आजीविका विचार राशि फल विचार भावफल विचार, ज्योतिष और रोग सरीखी पुस्तके बाजार में पहले पहुँच गयी तथा ज्योतिष व दाम्पत्य जीवन पिछड़ गयी। इस पुस्तक के लिए मित्रों व स्नेही जन का आग्रह था कि मेरे गुरुजन

कदाचित मेरे द्वारा अपने विचार पाठकों तक पहुँचाना चाहते थे मेरा भय

यही था कि क्या में पुस्तक की पाठ्य सामग्री तथा जिज्ञासु पाठको के साथ

न्याय कर पाऊगा।

न जाने क्या पुस्तक के लिए सरोत साम्रगी जुटाने का कार्य मित्रों ने स्व्ग ही मार डाला। मेरे लिए तो उसमें से सामग्री बटोर कर पुस्तक की रूपरेखा तैयार करने का दायित्व भर बचा।

श्रीमती मीना सलारिया तथा ज्योतिषाचार्य श्री हरीश आहूजा ने विचार विमर्श कर पुस्तक की विषय सूची भी तैयार कर दी आवश्यक उदाहरण कुडलियों को भी व्यवस्थित कर दिया।

पुस्तक के आरंभ में भारतीय संस्कृति में विवाह तथा गृहस्थ जीवन पर चर्चा हुई है। उसके बाद विवाह का अर्थ एक ऐसा सबंध जिसको विशेष
[14:25, 10/7/2020] Raahul Lakhera: कृतज्ञता ज्ञापन

मैं कृतः प्राचीन ऋषि मुनियों का जिन्होंने अपने बुद्धि बल तथा अदभुत निरीक्षण शक्ति से इस दिव्य ज्ञान को समृद्ध एवं व्यवस्थित किया। उनके द्वारा प्रतिपादित सूत्र देश और काल की सीमाए लाधकर भानय मात्र का कल्याण कर रहे है। निश्चित ही वै दिव्य दृष्टा मुनिगण, आदर व ा के पात्र है। उन्हें मेरा कोटिश नमन।

प्राधि प्रणीत विद्या के प्रचार प्रसार में लगे विद्वान टीकाकरण मुद्रक प्रकाशक विक्रेता र पाठक वृन्द भी धन्यवाद के पात्र है। इनकी निष्ठा य लेह इस अलौकिक विद्या की प्राण शक्ति है। वे इस विद्या को अधिक उपयोगी तथा सार्थक बनाने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है। उनकी दृढ़ आस्था य विश्वास निश्चय ही प्रशंसनीय है। गै आभारी १ अपने गुरजन श्री जे एन शर्मा श्रीमती डा ललिता

गुप्ता, श्रीमती का निर्मल जिंदल, श्री महेन्द्रनाथ केदार श्री रोहित वेदी

श्री रगाधारी तथा भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष

न्यायमूर्ति श्री एस. एन कपूर का जिनका कृपापूर्ण मार्गदर्शन व स्नेहपूर्ण

सहयोग मेरी लेखनी की आत्मा है। उनके अगाध ज्ञान व जन सेवा के उत्कृष्ट

भाव के लिए मैं श्रद्धापूर्वक नतमस्तक हूँ। मेरे मित्र हितैषी, ज्योतिष बंधु, शोधकर्ता पत्र व ज्योतिष प्रेमी सज्जनो का सहयोग व आग्रह ही मेरे इस पुस्तक का मुख्य कारण है। अत वे सभी विद्वान आदर व धन्यवाद के पात्र है। उन्होंने बड़े परिश्रम से पांडुलिपि के लिए सामग्री जुटाई।

मेरे मित्र व प्रकाशक श्री अमृतलाल जैन तथा उनके पुत्र श्री देवेन्द्र जैन ने ज्योतिष पत्रिकाओं से दुर्लभ लेखों का संकलन किया मानक ग्रन्थो को उपलक्ष कराया तथा संकलन को व्यवस्थित कर मेरा मनोबल व उत्साह बनाए रखा। निश्चय ही उनका परिश्रम श्लाघनीय है तथा भविष्य में भी मैं उनसे ऐसे ही सहयोग की कामना करता हूँ।

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