jatak tatvam

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[16:47, 10/8/2020] Raahul Lakhera: आमुख

अखिलासरा हिन्दी व्याख्या सहित जातक तत्व का यह परिष्कृत संस्करण आज आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए अपार का अनुभव हो रहा है। इस प्रथा को रचना आज से 115 वर्ष पहले, फाल्गुण पंचभी, विक्रम संवत 1928 को सलाम (रतलाम) पुरवास्तम्य औदुम्बर महादेव रेवाशंकर क्मा पाठक द्वारा किन्ही श्री विष्णु शास्त्री की सहायता से की गई थी। पं० महादेव पाठक ज्योतिष के अधी विद्वानों भें से एक थे । उन्होंने पत्रीमार्ग व दीपक आदि कई अन्य ज्योतिष सम्बन्धी पुस्तकों की रचना की थी।

प्रस्तुत गंधक जातक तत्व में गन्धक ने पराशर, जैमिनी, वराहमिहिर कल्याण वर्मा र कटादि के मन्तव्यों को पूर्णतया अपने मरित में त्यक्ष करके सूत्र रूप में समस्त जातक सम्बन्धी विषयों का सार स्षेप किया है। प्राचीन ग्रन्थों में जो विषय कई कई लोको में बताया गया है उसी को यहां गन्धकार ने समास रूप से सरल भाषा में प्रस्तुत कर दिया है। इस ग्रंथ का सर्वप्रथम संस्करण ग्रंथकार के पुत्र श्री श्रीनिवास महादेव शर्मा पाठक ने शक सं० 1837 में अपनी हिन्दी टीका के साथ प्रकाशित कराया था। वहीं पर मूल पाठ में पद-पद पर व्याप्त अशुदियों के कारण तथा टीका में व्यर्थ विस्तार व अनपेक्षित संक्षेप के कारण बह टीका सुरुचिपूर्ण पाठकों के हृदय में विशेष स्थान न बना सको । बाद में श्री सुब्रह्मण्यम् शास्त्री जी ने अपने संक्षिप्त अंग्रेजी अनुवाद के

साथ इसे प्रकाशित कराया था। वहाँ पर अनुवाद में अर्थ निर्धारण करते

समय श्री शास्त्री जी के एक स्थलों पर भयंकर मूल के शिकार हुए

है। उदाहरणार्थ प्रकीर्ण तत्त्व के पष्ठ विवेक का यह सूत्र देखिए
[16:47, 10/8/2020] Raahul Lakhera: विषय-सूची

1. संज्ञा तत्त्वम्

राशि-भाव-ग्रह-स्वरूप, शील व वर्गादि परिज्ञान । उच्चनीचादि ज्ञान । ग्रह मैत्री व दृष्टि । गुलिक साधन । ग्रहों का परस्पर सम्बन्ध । ग्रहों का कारकत्व व अवस्थाएं।

2. सूतिकातत्त्वम्

पितृपक्ष जन्म । नालवेष्टित-यमल जन्म । जन्मप्रदेश ज्ञान । जन्म का प्रकार | शादी विचार बालारिष्ट । समयबद्ध अरिष्ट । अरिष्ट भंग के योग । जारज योग। राजभंग। शरीर चिन्ह परिज्ञान । शुम योग । शरीराकृति परिज्ञान ।

प्रकीर्ण त्वम् प्रथम विवेक

फलादेश के सामान्य नियम । तनु भाव विचार । पतले शरीर के योग । पुष्टदेह योग । अंगों का आकार विकलांग योग । शरीर दुर्गन्धि योग । निर्लज्ज योग । कपटी योग । शूर व कातर योग । क्षमायुक्त योग । हास्यप्रिय योग । द्रोहकर्ता योग । चोर-दुर्व्यसन-कामुकादि योग । उन्माद योग । शीघ्र बुढ़ापे या चिर यौवन के योग । भोजन प्रकार । धीर-पिशुन योग । चाण्डाल-म्लेच्छ प्रकृति आदियोग ।विभिन्न शिल्पज्ञ योग कौतुकी-आलसी-कृपा योग । गंजापन । अन्धापन-नेत्र रोग-नेत्र घात व काण

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