JATAK BHUSHANAM

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Description

[16:53, 10/8/2020] Raahul Lakhera: ।। विषयावतारः।।

1. राशिशीलाध्यायः

.. मंगलाचरण, राशि पर्याय, शीर्षोदयादि विभाग, वर्गोत्तम नवांश, प्रकृति, वर्ण, दिशा, चतुष्पदादि संज्ञा, दिग्या राशि की बलवता, उच्च नीच विचार, मूल त्रिकोण, सप्तवर्ग, होरादिसाधन, केन्द्रादि संज्ञा, पीड़ा स्थान। 2. ग्रहशीलाध्यायः

काल पुरुष, ग्रह पर्याय. आत्मादि विभाग शुभ-पाप निर्णय, पूर्णचंद्र विवेक, प्रकृति विभाग काल व वर्ण, अधिदेव व दिशा, ग्रहों की ऋतुरस धात्वादि विवेक, दिग्बल दृष्टि ग्रहमैत्री, मारकेश विचार, ग्रह-भाव कारक कारक वर्ष, ग्रहों की परस्पर बाधकता।

3. तनुभावाध्यायः

ग्रह कारकत्व, लग्न के शुभ योग, शरीर विचार, अधिक पसीने के योग, क्रोधी व वामन योग, हास्य प्रिय, बन्धु कलह गजापन।

4. धनभावाध्यायः धनी योग, महाधनी योग, निर्धन योग धन नाश, सुन्दर नेत्र योग, जन्मान्यादि योग, का योग, अश्रुपात मुख

दुर्गन्ध योग। 5. सहजभावाध्यायः मातृसुख, भातृ नाश योग, पराक्रमी व दास योग, भुजा कष्ट योग

6. सुखभावाध्यायः

सुख विचार, दुखी योग, अधीरता योग, माता की दीर्घायु मात कष्ट-योग, वाहन योग, विधि वाहन, वाहन हानि, हृदय रोग, मकान कोठी का योग अकस्मात गृह प्राप्ति गृह नाश।

7. सुतभावाध्यायः

पुत्र प्राप्ति योग, सन्तान कारक ग्रह, अन्य योग, पाँच पुत्र

योग, एक पुत्र योग, पुत्रहीन योग, सन्तानोत्पत्ति में

विलम्ब व निराकरण, जार जात योग, पुत्र श, वश

विच्छेद योग, विद्या बुद्धि विचार ।
[16:53, 10/8/2020] Raahul Lakhera: दो शब्द

जातकभूषणनामा, मुकुन्दकृतीनामनयः सुमणिः ।

भाजेत् लोकदये, सुरेशकृतप्रणवरचनाप्रोतः।। प्रस्तुत ग्रन्थ श्री मुकुन्द दैवज्ञ पर्वतीय के प्रकाशित विशिष्ट ग्रन्थ में अभिनय। मौक्तिक है। परम्परागत शैली में जातक शास्त्र की भाषा विचार शाखा पर सुन्दर

सार संक्षेप यहाँ मिलेगा। भावफल विधा की श्रेष्ठ व सर्वमान्य पद्धतियों का युक्तियुक्त प्रस्तुतीकरण इंकार ने जिस प्रकार 'भाव बंजारी' में किया था. तद्तु यहाँ भावों के विभिन्न

योगायोग आधार पर विशेष बलाधान किया गया है। सोलह अध्यायों व 314 स्वरचित श्लोकों में ग्रंथकार ने प्रायः अवश्य पठनीय एवं कार्यसाधक विषय को प्रस्तुत कर दिया है। बारह आयतों में द्वादश भावफल व उनके योग तथा शेष चार अध्याय में ग्रह राशि शील भाव सारांश एवं बहुत रो प्रकीर्ण आवश्यक विषयों का संकलन भी किया है।

अतः मानसागरी जातकालंकार, सर्वार्थचिन्तामणि लघुजातक, चमत्कार-चिन्तामणि तथा खेटकौतुक आदि के समक्ष प्रस्तुत 'जातक भूषण' बीच के एक रास्ते का इंगित विधान सा करता प्रतीत होता है सच कहूँ तो ग्रन्धकार की यह मज्झिमा पग्ग विधा आपको खूब भाएगी।

प्रस्तुत प्रणधरचना हिन्दी व्याख्योपेत यही सस्करण इसकी सर्वप्रथम प्रस्तुति है। इसे अन्धकार द्वारा स्वयं लिपिबद्ध एवं श्लोक पाण्डुलिपि के आधार पर इसके सम्पूर्ण मौलिक रूप की सुरक्षा करते हुए प्रकाशित किया गया है अत नि सन्देह इस विस्तृत व्याख्या संस्करण को प्रस्तुत करने में स्वयं ग्रन्धकार है उत्तमर्णता के भागी है। हम द्वार शाखावत माथ मात्र है।

सभी आनुषगिक विषयों से सम्पृक्त प्रणव रचना हिन्दी व्याख्या के माध्यम से पाठकों का यत धित मार्गदर्शन हो सका तो हमारा परिश्रम अन्वितार्थ हो जाएगा। अज्ञान या प्रमाण के कारण रह गई भूलों को विज्ञान क्षमा करेंगे।

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