HEERA {HINDI} BY KAULACHARYA JAGDISH SHARMA (DP)

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Description

[13:07, 10/10/2020] Raahul Lakhera: यह सत्य है कि रत्न धारण करने से अनेक असाध्य रोग व बीमारियां मिट जाती हैं दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदला जा सकता है। प्रतिकूल ग्रह-गोचरों को अनुकूल बनाया जा सकता है। अर्थात सभी प्रकार की उन्नति के लिए रत्न धारण करना अत्यंत श्रेयस्कर माना जाता है। रत्न हमें शुभ-अशुभ कार्य होने का पूर्वानुमान भी कराते हैं । ये रत्न जाति, धर्म, संप्रदाय से हटकर सभी मानव को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। नौ रत्नों में हीरे को 'रत्नों का सम्राट' कहा जाता है। यह सभी रत्नों में अधिक मूल्यवान होता है। अपने रूप, गुण, असाधारण चमक के साथ ही प्राकृतिक व रासायनिक गुणों के फलस्वरूप यह अत्यंत लोकप्रिय रत्न है। इसकी खोज का श्रेय भारत को है। इसे धारण करने वाला व्यक्ति इसकी गुणवत्ता से यदि मिट्टी छू ले तो सोना

हो जाए। साधारण व्यक्ति महान हो जाए। सुख-संपदा

उसकी सहचारिणी हो जाए। धारणकर्ता में बेजोड़ नेतृत्व

क्षमता पाई जाती है।
[13:07, 10/10/2020] Raahul Lakhera: प्राक्कथन

रल उन दुर्लभ पुष्पों को भाति हैं जो न कभी मुरझाते हैं और न हो कभी कुम्हलाते हैं. वे सदैव चित्ताकर्षक व सम्मोहक होते हैं। पुष्पों को भाति सुगोंधत न होने के बावजूद भी ये तन-मन को देदीप्यमान करते हैं तथा अधातु ऊर्जाओं के दाता व शक्ति प्रदाता होते हैं। भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं, संस्कारों, संस्कृतियों ने संपूर्ण विश्व को अपने स्तन, आलौकिक दैविक आपदाओं से चमत्कृत किया

है। इसकी भौतिक संपदाओं की चमक-दमक से संपूर्ण विश्व चकाचौंध

हो रहा है। हमारे रत्नों ने सदैव अपनी उपयोगिताओं के कारण प्रसिद्धि

पाई है।

पारदर्शिता अल्प पारदर्शिता, पारदर्शिता, रंग विहीनता आकर्षकता, अनाकर्षकता, कठोरता आदि रत्नों के विभाजन की विभिन्न श्रेणियां हैं। अपर्याप्त और दुर्लभ वस्तुओं के संग्रह की लालसा मानव-मन में सदैव विद्यमान रहती है, इसलिए आसानी से प्राप्त सुलभ वस्तुओं, रत्नों आदि के प्रति उसका आकर्षण समाप्त हो जाता है। अतः रत्नों की

दुर्लभता भी उसका विशेष गुण माना जाता है। इसके अतिरिक्त रत्नों के दो और विशेष गुण हैं- प्रथम कठोरता व द्वितीय चित्ताकर्षकता। रत्न धारण करने की प्रथा अत्यंत प्राचीन तो है ही, साथ हो लाभकारी भी है। जनमानस के पटल पर रत्नों के विषय में अनेक भर्तियां हैं जिस कारण समाज का एक बड़ा वर्ग इसके लाभों से सदैव हो वांछित रहा है। इसी अज्ञानता वश इसका प्रभुत्व एक समुदाय विशेष के हाथों सीमित रह गया है। कब खरीदें, कहां से खरोदें, कैसे बनवाएं, कब और कैसे पहने? असली है अथवा नकली? क्या दूसरे का उतारा हुआ रत्न फलदायी होगा? इन्हीं सब भ्रांतिपूर्ण प्रश्नों के निवारणार्थ इस

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