Haath Ka Anguta, Bhagya Ka Darpan By Dr Bhojaraj Dwivedi [RP]

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Description

विषय-सूची

भाग-1

अ. चिन्तन वि

आ.प्रायन

1. अगस्त में जानने योग्य विषय 2. कौन सा हाथ देे और क्यों।

अंगुष्ठ पर पाये जाने वाले अमिट तिन्ह

द्वादश राशि, राशियों का निवास स्थान एवं उनका वैज्ञानिक विभाजन

5 अंगुष्ठ के प्रिंट में छिपी लग्न रूपी राशियां

6. अंगूठे पर पाये जाने वाले बन्ना का (तत्वानुसार) राशियों से सम्बन्ध

7.राशि चिन्हों का स्वभाव एवं स्वरूप . राशि अनुसार अंगुष्ठ पर चिन्हों के निशान

9. अंगुष्ठ से अशात्मक लग्न निकालना 10. अंगुष्ठ से जन्म कुण्डली बनाना

।। अज्ञात व्यक्ति का जन्म सम्बत् व सन् निकालना 12. सूर्य रेखा से जन्म माह निकालना

13. अंगुष्ठ से जन्म पक्ष निकालना 14. अंगुष्ठ से तिथि निकालना

15. अंगुष्ठ से जन्म लग्न एवं वार निकालना 16. अंगुष्ठ से जन्म समय निकालना

17. गणित चमत्कार

अदृष्ट शास्त्र मीमांसा

18. स्प्शांत्मक वर्गीकरण

19. आकृतिमूलक वर्गीकरण

20,

आकारप्रकारात्मक वर्गीकरण

21 पर्वपृष्ठाकृतिमूलक वर्गीकरण रेखाएं

अंगुष्ठ-पर्व पृष्ठ

23. यव-रेखामूलक वर्गीकरण

24.

रेखात्मक वर्गीकरण

25, कोणात्मक वर्गीकरण

विषय प्रवेश

अंगूठा चैतन्य शक्ति का प्रधान केन्द्र है। इसका सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है। फलतः अंगूठा इच्छा शक्ति का केन्द्र माना जाता है और व्यक्तित्व का प्रतिनिधिला करता है। हाथ की रेखाओं का जितना महत्व होता है, उससे भी ज्यादा महत्त्व अंगूरे

का माना गया है। वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि अंगूठे के नीचे स्थित नाही-समूह से शरीर में

प्राण-संचार होता है। खेतेश्वर उपनिषद में द्वप्रत्य जिक्ञासु शिष्य अपने आचार्य से पूछते हैं कि जीवात्मा का स्वरूप कैसा है ब्रह्मवेत्ता आचार्य प्रस्तुत मंत्र द्वारा आत्मा के स्वरूपक स्पष्टीकरण करते हैं।

अंगुष्ठमानो रव्नुत्यरूप, संकल्पाहंकारसमन्त्रितो यः। बुद्पेणुणेनात्मगुणेन वेर, आराप्रमात्रो ्परोऽपि ृष्टः ।।

श्वेताश्वतरोपनिषद 5/5

प्रस्तुत मन्त्र में 'अंगुष्ठमात्र शब्द जीवात्मा का वाचक है वेद मन्त्रों में शब्दार्थ से भावार्य (खेड़ा) का महत्व ज्यादा है।

उपनिषद् ऋषि ने जीवात्मा को सत्त्व, रज और तम इन तीनों गुणों से बंधा हुआ माना है। सामुद्रिक शास्त्र ने भी अंगूठे को तीन भागों में विभक्त किया है। पहला उपरि माग ब्रह्मा, मध्य विष्णु तथा अतिम (शुक्र स्थल) शिव से संचालित माना है जो कि क्रमशः सत्व, रज और तम के प्रतीकात्मक रूप हैं। ऋषि ने जीवात्मा को सूर्य के समान तथा संकल्प और अहंकार से युक्त कहा है। सूर्य प्राणशक्ति का घोतक है।

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