Grah Aur Santaan {VP}

₹150.00
availability: In Stock

  • Colour
  • Size

Description

विषय प्रवेश

अब यो बाब सोका मनुष्य लोकः पितृत पोको देवलोक इति सोयं

मनुष्य-लोक पुत्रेण जप्यो मान्य न कर्मणा पितृलोक

विप्रया देवलोको देवालोको वे लोकानां श्रेष्ठस्त तस्मात् विद्या प्रांतान्ति।।

इस मा को तीन सालों में विभाजित किया गया है मनुष्य लोक पितृलोक एवं देवलोक। एक आम व्यक्ति जिसको जीवन का सार ध्यान अथ ठपाजन, भोजन व परियार पृद्धि में ही रहता है. मनुष्य कहलाता है। अपनी इ जो इस्लों की भलाई हेतु अपना ध्यान केंद्रित करते हैं पितृ कहलाते हैं तथा को आपने जान का प्रकाश जगत में फैलाते है एवं एक उच दर्शान को बात करते हैं देश कहलाते मनुष्य लोक परंपरा द्वारा विजय प्राप्त को जाती है और निु्र अपने को हाय हो समझो। विलाप कर्मों द्वारा विजय प्राप्त की है चकि फित् सदैय जगावल्याण में लिखते है। देवलोक पर विद्या द्वारा बिजय पई जाती है। देव स आध्यात्मिक ज्ञान आते हैं और इसी कारण विद्या की प्रशस की जाती है।

देवलोक मातम कहा जाता है।

सभी पारंपरिक समाज में विशेषतया एशिया में मानव जीवन के आध्यात्मिक

बाला के चार स्तर है। यूरिक स्तर मानवीय आधार पर निशा, उसकार, एवं मैथून। या तो मनुष्य और पशु में कोई अंतर नहीं। दूसरा स्तर है, सदना या जीवन में पकने प्रत्येक पटना डमा रोग। हाय मृत्यु मा पा सदैव सा है। इनको समझने एवं इससे निपटने के लिए मानव के युगों में कई विषयों जैसे दया मनोविज्ञान ज्योतिष आदि का अधिकार किया है। तीसरा स्तर । बौद्धिक जिससे फलसफा जन्म लेता है. उपनिषदों में समाहित हान से संकर पाश्चात्त्य उथला सन जिसने कभी सत्य को जाना हो नहीं। हिन्दु दर्शन साक्षात अनुभवों पर आधारित है, सत्य पर आधारित है अतः दर्शन कहलाला है फलसफा नहीं। बीच्या स्तर है आध्यात्मिक जिसके समूचे विश्व के सभी देशों में तथा सभी

समाजों में कुछ लोग पास है। भारतीय सभ्यता में महान ऋषियों ने इन थारो रत्नों को एक सूत्र में पिरोया तथा उस महान पुणे में काम के प्रति उतना हो संवेदन अणितना कि मानव जीवन के एवं कारणों को जानना।

Reviews

No reviews have been written for this product.

Write your own review

Opps

Sorry, it looks like some products are not available in selected quantity.

OK