Dattatreya Tantra By Dr Rudradev Tripathi [RP]

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Description

एक दृष्टि में

समस्त चराचर के कल्याण की कामना से, भगवती जगदम्बा के आग्रह से भगवान शिव ने 'तन्त्र-विद्या' का उपदेश दिया है इसमें प्राणीमात्र के जीवन में आने वाली सभी प्रकार की कठिनाइयों का निवारण करने का विधान है इसके साथ ही ऐसी कोई इच्छा शेष नहीं

रहती कि जो तन्त्र-साधना के द्वारा पूर्ण नहीं की जा सकती। 'तन्त्र शास्त्र' एक महान् वैज्ञानिक देन है, जिसके द्वारा बताये गये मार्ग का अवलम्बन लेकर साधक मनुष्य बड़ी-से-बड़ी कामनाओं को सहज रूप में साध सकता है। इस विद्या की यह विशेषता है कि यह प्रकृति के विशिष्ट उपादानों के द्वारा विधि-विशेष से साधना करके, मन्त्र जप से उसे तेजस्वी और कार्य सम्पादन के सामर्थ्य से सम्पन्न बनाता है तथा स्वयं के और अन्य जनों के कष्ट-निवारण, इच्छित फल-प्राप्ति एवं कल्याण के मार्ग को प्रशस्त कर लेता है।

भगवान दत्तात्रेय की उपासना' एक ऐसी उपासना है, जिसके द्वारा कलियुग में शीघ्र सफलता मिलती है। सिद्ध महायोगी के रूप में सर्वत्र प्रत्यक्ष होकर फल देने वाले ये जागृत देवता हैं। ये अमर देवता हैं इनमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव के मिश्रित तेज का निवास है, अतः सृष्टि, स्थिति और प्रलय के सभी कार्य सिद्ध करने में इनकी पूर्ण शक्ति विद्यमान है। दत्तात्रेय-तन्त्र भगवान शिव और दत्तात्रेय के संवाद के रूप में निर्मित है। इसमें बीस प्रकार के तान्त्रिक कर्मों का विधान दिया गया है।

इसके प्रयोग सुपरीक्षित हैं। यह एक महत्वपूर्ण, सर्वमान्य तन्त्र है।

 

ग्रंथ-परिचय

भारतीय तन्त्र-शास्त्रों की शृंखला में छोटे-बड़े अनेक तन्त्र-ग्रन्थ मुद्दित

हुए हैं। उनमें 'दत्तात्रेय तन्त्र' भी सर्वमान्य ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ भगवदवतार, महायोगी, कालजयी, त्रिदेवरूप तथा परम सिद्ध श्री दत्तात्रेय द्वारा तंत्रशास्त्र के प्राचार्य भगवान शंकर से प्रार्थना करके विशेषतः कलियुग में सिद्ध-तन्त्रविद्या-विधान के रूप में प्राप्त किया गया है। अट्ठाईस पटोला में निर्मित यह तन्त्र ग्रन्थ उत्कीलन आदि विधानों की अपेक्षा रखे बिना ही सर्वदोषों से रहित, शीघ्र सिद्धि देने वाला बतलाया गया है। भगवान शंकर ने अपने परम भक्त श्री दत्तात्रेय के लिये अत्यन्त गुप्त होते हुए भी इसको प्रकट किया है। इसमें परम गोपनीय विषयों को संकलित किया गया है, जिनमें क्रमश: मारण, 2. मोहन, 3. स्तम्भन, 4. विद्वेषण, 5. उच्चाटन, 6, वशीकरण, 7. आकर्षण, 8. इंद्रजाल, 9. यक्षिणी साधना, 10. रसायन-प्रयोग, 11. कालज्ञान, 12. अनाहार, 13. बिहार, 14. भूमिगत. 15. मृतवत्सा, बांझपन तथा पुत्र-सन्तति न होने के दोषों का निवारण तथा पुत्र प्राप्ति के उपाय, 16, जयवाद युद्ध में तथा जुआ आदि में जीतने के उपाय, 17. वाजीकरण, 18. भूत ग्रह-निवारण, 19. सिंह-व्याघ्र भय-निवारण तथा 20, साँप और बिच्छू आदि जहरीले जीवों के भय से बचने के प्रयोग आदि मन्त्र और विधि सहित 28 पटलों

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