DASHAPHAL DARPAN BY DR. SURESH CHANDRA MISR

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Description

एक दृष्टि में

विंशोत्तरी दशा : प्राण दशा भुक्ति तक फलक यन।

सूक्ष्म दशा फल के लिए प्रसिद्ध रचना।

लगभग 100 वर्षों पुराना ज्योतिष पुस्तक। हिन्दी भाषा में सर्वप्रथम प्रकाशित। पाराशरहोरा के आधार पर लिखित दशाफल । कई अचूक दशाफल नियमों का खुलासा । श्रीनिवास महादेव पाठक रतलाम की लेखनी से। सूक्ष्म दशा का फलादेश : अकाट्य व अनोखा। सूर्य-प्रमाण-संग्रहणीय ग्रन्थ।

 

प्रास्ताविकम्

दशाफल दर्पण नामक यह ग्रन्थ पं. श्रीनिवास पाठक, रतलाम, मध्य प्रदेश निवासी, श्री महादेव पाठक के पुत्र ने संग्रह करके लिखा था तथा उपने के बाद यह पाठकों को बहुत बेयस्कर लगा भी था। यास्त में यह एक संग्रह ग्रन्थ है। गन्यकार का दावा है कि विभिन्न ग्रनयों से उन्होंने संग्रह करके इसे तैयार किया है। विक्रम संवत् 1960, फाल्गुन शुक्ल पंचमी, रविवार को रतलाम में यह कार्य समाप्त हुआ था, जैसा कि लेखक ने पुस्तक के अन्त में स्वयं लिखा है। सदनुसार 21 फरवरी, सन् 1904 रविवार, को यह ग्रन्थ समाप्त हुआ या। अतः इस की रचना आज से 97 वर्ष पूर्व हुई थी। महादेव पाठक, जातक तत्त्वं के रचयिता हैं साथ जातक सत्यम् फलादेश के लिए एक अच्छा ग्रंथ माना जाता है। यह औदुम्बर पाठकों का वंश ज्योतिष के हो में, अपने समय में अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुका था। श्रीनिवास पाठक, इन्हीं महादेश पाठक के पुत्र हैं।

जिस समय दशाफल दर्पण लिखा गया था, उस समय पाराशर होरा की हस्तलिखित प्रतिमा ही केवल देशों के निजी संग्रहों में थीं। उसका छपा संस्करण कोई भी उपलब्ध नहीं था। पाराशरहोरा को सम्पूर्ण रूप से छपरा पाना, उस युग में सरल कार्य नहीं था, अतः श्रीनिवास पाठक ने अपने पिता के जीवन काल में ही सम्भवतः पाराशरहोरा से दशाफल के श्लोकों को यथावत्, मामूली हेर-फेर से संग्रह करके यह पुस्तक तैयार को थी, जो उस समय के अनुसार एक प्रशंसनीय कार्य या। वृहत्पाराशरहोरा शास्त्र के कई मुद्रित संस्करण आज उपलब्ध है, अतः बहुत-सा पाठ पथावत् पाराशरहोरा में उपलब्ध होने से यह ग्रन्थ प्रामाणिकता की श्रेणी में आ ही जाता है। मानसागरी, जातकाभरण पाराशर होरा तथा मार्ग नाड़ी ग्रन्थों से मूलपाठ का संग्रह करके तैपार यह पुस्तक विभिन्न ग्रन्थों की विषयसामग्री लेकर तैयार की गई है, ऐसा कहना मिथ्या तो नहीं है। यदि उक्त ग्रन्यों के विषय व फल भिन्न होते तो बात ठीक होती, लेकिन जिस तरह पाराशरहोरा के आधार पर ही कभी भार्गवनाड़ी लिखी गई थी, उसी तरह

दशाफलदर्पण भी पाराशरहोरा के मूलपाठ से ही प्रायः उपवीत किया गया है।

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