Dampatya Sukh by Dr Sukhdev Chaturvedhi [RP]

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Description

शास्त्र का विषय सूक्ष्म और गहन है, इसका प्रयोजन भविष्य की पटनाओं का परिचय कराना ही नहीं, अपितु परिचय देकर लाभ कराना भी है। जीवन में हम अनेक लोगों के सम्पर्क में आते हैं। माता-पिता के पश्चात व्यक्ति का निकटतम सम्बन्ध पत्नी के साथ रहता है, इस सम्बन्ध का प्रभाव केवल मनुष्य के जीवन तक ही नहीं, अपितु उसके वंश की आगामी कई पीढ़ियों तक चलता है, क्योंकि सन्तान परंपरा में पूर्वजों के

गुण-दोष किसी न किसी रूप में विद्यमान रहते हैं। दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा या दुःखमय, और इसे कैसे सुखमय बनाया जा सकता है, यह प्रश्न एक गम्भीर चुनौती के रूप में भारतीय जन-मानस को आन्दोलित करता रहा है। ज्योतिष शास्त्र के मनीषी आचार्यों ने प्राचीन काल में ही इस प्रश्न का भली भाँति विचार किया था और उन्होंने सुखमय दाम्पत्य जीवन के लिए उपयुक्त वर-वधू का चुनाव, उनके गुण दोषों का विचार, उनकी प्रकृति एवं अभिरुचियों में समानता की पहचान तथा उनके आपसी पूरकत्त्व भाव का पृथक्-पृथक् रूप से गम्भीरतापूर्वक विचार कर उन सिद्धांतों एवं नियमों का प्रतिपदान किया जिनके द्वारा न केवल दाम्पत्य सम्बन्धों का ही, अपितु दाम्पत्य जीवन के समस्त पहलुओं को सरलतापूर्वक जानकर समाधान किया जा सके। आचार्यों द्वारा प्रतिपादित उक्त सिद्धान्त का विवेचन ज्योतिष शास्त्र

के प्रसिद्ध जातक एवं प्रश्न ग्रन्थों में किया गया है, किन्तु ये सभी ग्रन्थ

संस्कृत भाषा में लिखे होने से जन-साधारण की पहुँच से काफी दूर हैं,

 

प्रथम अध्याय-विषय प्रवेश

9-16

वर्तमान में प्रचलित ज्योतिष सम्बन्धी शास्त्र प्रयोगों की च्चा| जन्म कुण्डली ठीक होनी चाहिए, विना कुण्डली केवल नाम राशि अथवा नक्षत्र से भविष्य ज्ञान संदिग्य, दम्पत्ति विचार। 17-36

द्वितीय अध्याय-दम्पत्ति विचार :

विवाह के लिए उपयुक्त वर का चुनाव, वरणीय लड़के के गुण एवं दो, प्रमुख गुण अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा, उत्तम चरित्र, अच्छा भाग्य, दीर्घायु योग एवं संतान योग कुण्डलियों के उदाहरण सहित।

तृतीय अध्याय-वर की कुंडली के प्रमुख दोष : 37-50

कुछ ऐसे योगों का वर्णन, अल्पायु योग, रोगी योग, नंपुसक योग, व्यभिचारी योग, दरिद्री योग, संन्यासी, विचार एवं बहु विवाह योग। उदाहरणार्थ कुण्डली श्री अरविन्द स्वामी, स्वामी विवेकानन्द एवं एक ऐसी कुण्डली जो सन्तानहीनता दर्शाती है।

चतुर्थ अध्याय-विवाह के योग्य वधु का चुनाव : 51-59

कन्या के प्रमुख गुण, अच्छा स्वास्थ्य, शालीन स्वभाव, अच्छा भाग्य, समुचित शिक्षा, पतिव्रता योग, सन्तान सुख आदि। पंचम अध्याय-व्रणीय कन्या की कुंडली के प्रमुख दोष : 60-80 अरिष्ट योग, रोगिणी, चरित्र की कमजोरी, दरिद्रता, मृतवत्सा योग विधवा, बन्ध्या, काक वन्ध्या योग, विष कन्या योग एवं इ दुष्परिणामों से बचने के उपाय।

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