BRASHPATI (बृहस्पति ग्रह )

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Description

ग्रह गाथा श्रृंखला की पंचम पुस्तक बृहस्पति आपके हाथ में है। इस पुस्तक में बृहस्पति ग्रह से सम्बन्धित विभिन्न ज्योतिषीय विषयों का उल्लेख विस्तार पूर्वक किया गया ग्रहों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने के दृष्टिकोण से ग्रह गाथा मुंखला को पुस्तकों को पाठकों ने अत्यधिक सराहा है। इस प्रशंसा ने निश्चित रूप से मैरा आत्मविश्वास चला है। अब और उत्साह के साथ में शेष नहीं की पुस्तकों को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर

प्रस्तुत पुस्तक बृहस्पति पाठकों के लिये अत्यधिक ज्ञानवर्द्धक एवं ज्योतिष की जानकारी बढ़ाने वाली सिद्ध होगी। बृहस्पति का नवग्रहों में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है। इस ग्रह को सबसे अधिक शुभ और सुख प्रदान करने वाला माना गया है। द्वादश भावों में यहाँ ग्रह सर्वाधिक भावों का कारक बनकर जातक के जीवन को प्रभावित करता है। चालारिष्ट और अशुभ योगों का नाश करने के लिये महत्त्वपूर्ण रूप से बृहस्पति की भूमिका देखी जाती है। मुहूर्त, हस्तरेखा, प्रश्न लग्न कुण्डली, गोचर इत्यादि का विचार करते समय भी इस ग्रह का महत्त्व सर्वाधिक माना गया है। कन्या की जन्मपत्रिका में बृहस्पति को विवाह का नैसर्गिक कारक माना जाता है। इन सभी फलों से स्पष्ट होता है कि बृहस्पति सभी ग्रहों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं।

यह तो हुई ज्योतिष तयों की यात, यदि बृहस्पति का पौराणिक स्वरूप देखें तो वह अत्यधिक सम्मानीय और मापूर्ण है। बृहस्पति को देवगुरु माना जाता है। वे समस्त देवताओं के लिये भी पूजनीय होते हैं। पुराणों में उनके परिवार का वर्णन मिलता है। उन्होंने अपने ज्ञान से समस्त देवताओं को कृतार्थ किया है। नवग्रहों में वे सबसे विशाल और भारी माने जाते हैं। यही सम्मान बृहस्पति को ज्योतिष शास्त्र में भी मिला है।

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अब शास्त्रों के तथ्यों से बाहर आते हैं, वास्तविकता में जैसे अन्य ग्रह जन्मपत्रिका में अपना फल प्रदान करते हैं, वैसे ही बृहस्पति भी अपने फल देता है। वह शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के फल प्रदान करता है। मारकेश होने पर वह मारक बनता है, तो शुभ योग बनाने पर अत्यधिक अनुकूल फल देने वाला होता है। फलादेश में गुरु का वही महत्त्व है, जो अन्य ग्रहों का होता है। अशुभ स्थिति वाला गुरु पितृदोष, दारिद्य दुःग्र सारोरिक कार प्रदान करने वाला होता है। सकट योग, चाण्डाल योग, भाग्यहीन योग जैसे अशुभ योग भी गुरु की नकारात्मक स्थिति से उत्पन्न होते हैं। उसकी दशा में आवश्यक नहीं है कि आपको सदैव शुभ फल ही प्राप्त हों ।

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