Bhuvan Deepak [Hindi] by Dr Sukhdev Chaturvedhi [RP]

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Description

[13:20, 10/8/2020] Raahul Lakhera: एक दृष्टि में

प्रश्न का फल विचार करने हेतु प्राथमिक जानकारी प्रत्येक भाव से विचारणीय प्रश्न प्रश्नकालीन लग्न एवं चन्द्रमा के महत्व का निरूपण लग्नेश और कार्येश के सम्बन्ध से कार्य सिद्धि योग

विनष्ट ग्रह के प्रभाववश कार्यनाश चार महत्वपूर्ण राजयोग कार्य कितने दिनों में होगा? उसकी अवधि का ज्ञान; गर्भ गर्भपात में गर्भ में जुड़वां बच्चों के योग; पुत्र का जन्म होगा या कन्या का? विवाह एवं दाम्पत्य सुख विचार क्या प्रेमिका से विवाह होगा? मुकदमा; लड़ाई एवं अन्य विवादों से हार जीत सुविचार अचानक लाभ योग प्रवास से निवृत्ति और विदेश में मृत्यु योग रोग विचार-रोग की वृद्धि और समाप्ति, रोग निर्णय चोरी गई वस्तु, घर से भागा प्राणी मिलेगा या नही विविध वस्तुओं की तेजी-मन्दी का निर्णय प्रश्न कुण्डली बनाना

Alor
[13:22, 10/8/2020] Raahul Lakhera: इस पुस्तक के बारे में

्योतिषशास्त्र फलं पुराणगणकेरादेश इत्युषच्यते भारतीय मनीषियों की इस के अनुसार दैनंदिन जीवन में घटने बाली विविध घटनाओं का विचार मान्यता एवं विवेचन कर आदेश करना ही ज्योतिपशास्र का एकमात्र लक्ष्य है। इस लक्ष्य । तक पहुंचने के लिए फलित ज्योतिष में जातक ताजिक,प्रश्न, शकुन एवं सामुद्रिक आदि अनेक मार्ग बताये गये हैं। किन्तु इन सबसे प्रश्न शास्त्र का एक महत्वपूर्ण स्थान है। कारण यह है जातक एवं ताजिक शास्त्र का फलोदेश जन्म समय पर आधारित होता है और लोगों को सामान्यतया अपना ठीक-ठीक जन्म समय ज्ञात नहीं होता। ठीक जन्म समय की जानकारी न होने के कारण प्रायः ২ ५% जन्म पत्र अशुद्ध पाये जाते हैं। सामुद्रिक एवं शकुन शास्त्र पर आधारित फलोदेश भी एक प्रकार का अनुमानजन्य ज्ञान है, किन्तु इसको प्रक्रिया उतनी सरल एवं स्पष्ट नहीं है कि साधारण पढ़ा-लिखा मनुष्य भी इसके द्वारा भविष्यत् के विषय में निश्चित जानकारी प्राप्त कर सके। केवल प्रश्न शास्त्र ही वह

सरलतम मार्ग है, जिसका अवलम्बन कर मनुष्य दैनिक जीवन में सामने आने बाले समस्त प्रश्नों का समाधान खोज सकता है। प्रश्नशास जन्मपत्रिका एवं वर्षफल जैसी किसी लम्बी-चौड़ी गणित के बिना हो मात्र प्रश्न कुंडली के आधार पर जटिलतम प्रश्नों का सूक्ष्म एवं स्पष्ट फल बतलाता है। इस शास्त्र में प्रश्न का फल विचार करने की मुख्यतः तीन रीतियां प्रचलित

(क) प्रश्नकालीन समय सिद्धान्त : मह सिद्धान्त समय के शुभाशुभत्व पर आधारित है, जिसका निर्णय प्रश्नकालीन कुंडली में यह स्थिति एवं म्रह योगों द्वारा किया जाता है। (ख) प्रश्नकाल स्वर-सिद्धांत : यह सिद्धान्त आदेशकर्ता के स्वर (श्याम) के आगमन और निगमन द्वारा शुभ अशुभ फल का निरूपण करता है। ब्रह्माण्डवाद,

पूर्व निश्चयवाद एवं अदृष्ट पर आधारित होने के कारण यह सिद्धान्त कुछ जटिल

ना गया है।

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