Bhavartha Ratnakar [Hindi] by Krishna Kumar [AP]

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Description

[12:46, 10/7/2020] Raahul Lakhera: अध्याय

विषय

1. मेष लग्न

भावार्थ रत्नाकर -श्री रामानुजाचार्य कृत विषय सूची

पृष्ठ संख्या

12 चतुर्थ पंचमेश का परस्पर दृष्टि संबंध योग कारक 13 शुक्र प्रथल मारक ।4 मृत्यु में गुरु भी मारक 1.6 मंगल चोट या व्रण से कर देता है। 17 युष और मंगल को युति होने से बुध की दशा में चोट लगने से मृत्यु भय 19 द्वितीयेश शुक्र व्यय भाष में भी शुभ है ।।। द्वितीय भाव में लग्नेश भाग्य त स्वेी धनेश को पुति धन प्रदक । पंचम भाव में मंगल धन प्रदायक है।15 पप्पा भाव में लानेश की पष्ठेश से युति रोग कारक 116 अष्टमस्थ शुभ है 1.19 सूर्य व चुध को दशा शुभ है ।2। सूर्य और चन्द्रमा राजयोग देते हैं। मेष लग्न के 45 उदाहरण कुण्लिया।

वृष लग्न 16-27 21 शनि योग कारक होने पर भी सूर्य या युद्ध की दृष्टि युति के बिना शुभ फल नहीं देता 2.2 भाग्यस्य मंगल गुरु की युति शुभ है 23 चतुर्थस्य चन्द्रमा पर धनेश बुधव लाभेश गुरु की दृष्टि धन प्रदायक 24 सूर्य शनि की लाभ म्मान में युति तथा 2.5 युध और गुरु का परस्पर सम्बन्ध धन प्रदायक है 26 मंगल की बुध या गुरु को दृष्टि- युति ऋण भार चदातो है 23 बुध गुरु पर शुक्र की दृष्टि योग कारक है 29 नीचस्थ गुरु की दशा में भाग्योदय 211 गुरु की दशा धन प्रदायक 2.12 पष्ठ प की दुबैलता सुभ फल देती है। अप लग्न को 46 कछिया।

मिथुन लग्न 28-39 3. तृतीय भाव में सूर्य बुध की युति होने से बुध को दशा मुक्ति धन प्रदायक 32 द्वितीय भाव में चन्द्रमा के साथ मंगल और शुक्र की युति होने से शुक्र की दशा धन वैभव देती है 33 लाभेश मंगल द्वितीयाय होने पर अपनी दशा में धन लाभ देगा 34 धन भाव में शनि मंगल की युति पर चन्द्रमा की दृष्टि शनि-मंगल में धन हानि देता है। 3.5 चन्द्रमा व मंगल राम और शनि भाग्य स्थान में होने पर धन लाभ 37 नवम भाव में गुरु शनि की युति तीर्थ यात्रा व स्नान देती है 3.8 लाभस्थ युध बड़े भाई से वैर विरोध का है। मिथुन लान की 44 कुण्डलियाँ। 4. कर्क लग्न

40-54 4.1 गुरु अधिक धन नहीं देता 42 स्वक्षेत्री मंगल योगकारक होने से विशेष शुभ है। 3 लाभेश शुक्र व्यय भाव में भी शुभ है 44 चन्द्र मंगल गुरु को धन भाव में युति भाग्यवृद्धि करती है 4.5 पंचम भाव को तुला राशि में बुध, शुक्र की युति बुध की दशा को शुभता देती है 4.6 सूर्य गुरु का उच््यस्य तथा चन्द्र बुध शुक की लाभ स्थान में पुति महाराजा योग बनाती है 4.7 सूर्य मंगल की दशा भाव में युति धनी बनाती है 4 १ व्यय भाव में शुक्र बुध को युति, शुक्र की दशा में राजयोग देगी 4. 10 लग्न में लानेश चन्द्र भाग गुरु की युति भाग्य व यश बताए 4.1। चन्द्रमा लग्न में तथा मंगल सप्तम भाव में उच्चस्थ होने से राजयोग देगा 4.12 स्वगृही चन्द्रमा पर उच्चस्थ शनि की दृष्टि

2

3.
[12:47, 10/7/2020] Raahul Lakhera: 9. धनु लग्न

104-115 । पंचम शनि की द धन व परा देतो है 92 ा स्थान में बैठे राज्यस्य शनि की दशा धन लाभ व रस्ता सुख देती है, उदाहरण सपाट भीगे 9.3 नवम भाव में भारपेश व लाभेश की युति पर तृतीयस्थ शनि की दृष्टि हो तो शनि धन व भाग्य वृद्धि देगीं 94 नवम भाव के राहु पर तिल भाव में बैठे सूर्य मंगल की दृष्टि जाने से राहु की दशा में तीर्थ स्थान का होगा 95 डॉ बी.बी.रण के बियार धनु लम्न की कुण्डतिर्य।

10. मकर लग्न

116-126 101 शुक्र सप्तम में बुध अष्टम भाव में तथा गुरु लम्न में भीध् होने पर जातक निर्धन य दोनो होता है।02 शुक्र पंचम भाव में धन प्रदायक है किन्तु दागम्य शुरु दिग्या से होन होने से धन भी नहीं दे पा 10.3 मध शुक् की लम में युति हो ता पचम गा में उच्च चन्द्रमा गुरु से दृष्ट हो सो महाराजा योग होता है। 104 तृतीया गुरु मन में भी हो तथा लाभ स्थान में मंगल और शुक युति तो भाइयों से धन मिलता है। 106 सूर्य चन्द्रमा और की युति लग्न में हो तथा मंगल और शुक्र व्यय भाव में हो तो जातक के भाई धनी व भा्यशाती होते हैं। 10.7 भाग्येश युग की लग्नेश लाभेश शनि के साथ नवम भाव में युति तथा मगल और शुक्र व्यय भाव में हो तो भागपयृद्धि होती है 10.8 लाभेश मंगल लन में उच्पध्य होकर स्व्री चन्द्रमा हैं से दुष्ट हो तो जातक राजयोग पाता है।

11. कुम्भ लग्न 11 सिा या कुम्भ लग्न में नवमेश दशमेश को मु योगकारक नाहीं होती।।:2 शुक्र को राहु के साथ लगन में युति हो तो सूर्य म भाव मे होतोराह और गुरु की दशा धन, धन व सुख देगी 113 अष्टम भाव में सूर्य और मंगल की युति तो बुध को दशा धग देगी 14 धनेश व लग्नेश की राशि परिधान होने पर शानि की दशा टत शुभ परिणाम देगी ।।5 लाभ स्थान में शुक्र और शनि की युति होने से शुक्र को दशा शुभ लेती है।।6 सूर्य, बुध, गुरु की युति तृतीय भाव में होने से सूर्य की द भगवा सुख देगी उपकरण पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब 12 डॉ. बी.पी. रमण के व कशी. रमण की कुण्डलिया कु लम् की 46 dard

127-141

12. मीन लग्न क वे मौन लग्न के लिए व्ययस्य शुक्र शुभ नहीं है। कारण शनि क्षेत्री शुक्र प्रायः शुभ फल नहीं दे पाता 12.2 लाभेश शनि का व्यवस्था होना शनि को शुम बनाता है मित व्यय भाव में बैठा चन्द्रमा बहुधा अनिष्टप्रद होता है 123 गुरु की दशा में व्ययस्य चन्द्रमा अशुभ परिणाम ना देता 12.4 धनेश पचमेश का राशि परिवर्तन पंचमेश चन्द्रमा. की दशा में धन लाभ देता है 12. पष्ट गुरु, अष्टम भाव में शुक्र सपा नवम भाव में शनि और चन्द्रमा मगल को युति लाभ स्थान में होने सें जातक भागशाी ता है। 12.7 लाभ स्थान में चन्द्र, मंगल और बुध की युति धन व वाहन सुख देती है 125 शनि व चन्द्रमा की युति लग्न में हो, शुक्र षष्ठस्य व मंगल लाभ स्थान में होने पना

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