Aapki Rasi Bhavishya Ki Jhaaki by Sharadendu [RP]

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Description

भूमिका

ज्योतिष-विद्या का ये न केवल अतीत में झांकना और भविष्य को प्राकना है, बल्कि मानव-मन की गहराई को मापना भी है। इस संसार में मानव- मन से अधिक गू, अधिक अथाह दूसरी वस्तु नहीं है। अतः इस विधा को हा का षु ठीक ही कहा गया है।

हमारे प्राचीन आचार्य ज्योतिष विद्या की इस संभावना से भली-भाति परिचित थे राशि चक्र को बारह भागों में विभाजित कर और उसमें सौर मण्डल के सात (राहु-केतु को मिलाकर नवग्रहों के संचरण को आधार मानकर जहाँ उन्होंने मनुष्य के भाग्य को पढ़ने का प्रयास किया बहा उसकी प्रकृति और स्वभाव के अवगाहन का भी प्रयत्न किया। इसके लिए उन्होंने बारह राशियों के अनुसार मनुष्य को बारह भागों में विभाजित किया और अपने दीर्घ अनुभव तथा अन्त् टी से जन्मे राजावत कुछ मूल गुणों को कल्पना की । प्रत्येक राशि को उन्होंने एक-एक प्रतीक भी दिया, जैसे मेष राशि का प्रतीक मेष, वृष राशि का प्रतीक विष या बल, मिथुन राशि का प्रतीमा नर-नारी का जोडा है । बस्तुतः इन प्रतीकों के नाम पर ही उक्त बारह राशियों के भी नाम रखे गए हैं। दिलचस्प बात मह है कि व्यक्ति का किस राशि से सम्बन्ध होता है, उसमें उसके प्रतीक के मूल गुण पाए जाते हैं । मेष जातक के स्वभाव में मेष जैसा आवेश पापा जाता है; वृष जातक बैल की भक्ति धीरे-धीरे अपना काम करते रहने में विश्वास करता है। मिथुन जातक का मस्तिष्क नर-नारी के सम्बन्धों की भांति बचल होता है, कर्क जातक कर्क की भांति अपने अधिकार में आई अरस्तु को जकड़े रहता है; सिह जातक में बनराज जैसे अनेक राजसी गुण होते है, आदि।

कालान्तर में हमारे देश में ज्योतिष के इस अंग की प्रायः उपेक्षा होती गई और ज्योतिषियों का ध्यान भविष्य फल की और ही अधिक रहा। इससे जहां ज्योतिष-विद्या एकांकी है वहां उसका विकास रुका और नवा शोध-कार्य लगभग समाप्त हो गया। हमारे अधिकांश ज्योतिषी, जिनमें अनेक स्वनामधन्य भी हैं, यही मान बैठे कि हमारे प्राचीन आचार्यों ने जो सिद्धान्त स्थिर कर दिए, उनसे आगे जाने को हमें आवश्यकता नहीं है।

सौभाग्य से, हमारे आचार्यों ने इस विद्या को जहां छोड़ा, बहां से सूत्र पकड कर पश्चिम के ज्यो पयों ने इसे एक नया वैज्ञानिक स्वरूप देने का प्रयास किया

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