ज्योतिषश्यामसंग्रह Jyotish Shyam Samgrah [khemraj ]

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Description

भूमिका।

ज्योतिर्विनोदरसिकान् विज्ञापयामि । देखना चाहिये इस संसारमें परब परमेश्वरने ज्योतिपशासखरूपी एक केमा रत्न पैदा किया है कि जिसके द्वारा सम्पूर्ण प्राणिमात्र के पूर्वजन्म

इस जन्म परजन्मका हाल और उनका प्राप्त होनेका समय अच्छी तरह जान सकते हैं। मनुष्य के जन्म मरण का समय कोई शास्त्र नहीं जान सकता है परंतु इस शास्त्र के द्वारा भली भांति उक्त बातें सच होती हैं जिस मनुष्पने होराशास्त्र रूपी अंजनी को नेत्रोमें दिया है वह त्रिकालदर्शी देवता- ओके समान मैना में पूजनीय होता है । सृष्टिकर्ता ने जिस वक्त वेद के चार भाग किये उसी समय छः अंग शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष बनाये हैं। व्याकरण को वेद का मुख, ज्योतिष नेत्र, निरुक्त का क्ण, कल्पको हस्त, शिक्षाको नासिका, छंद के दोनों पैर बनाये हैं, क्योंकि सिद्धांतशिरोमणि में ऐसा लिखा है-"शब्द शासन में ज्योतिष चक्षुपी ओतमुकं निरुक्तं च कल्पं करी ॥ या तु शिक्षास्य देदस्य सा नासिका पादपप्रय छंद आयुर्बुधैः ॥” परंतु इन अंगों में मुख्यतः नेत्रों को ही दी है, क्योंकि कर्ण नासिकादि सब अंगों सहित मनुष्य नेत्रोंके हीन होने से कुछ नहीं कर सकता है-"संपुतोधपोतरैः कणनासादिभिष्यक- पंगेन हीनों न किंचित्करः" सो ऐसा अद्वितीय रत्न इस संसारमें लोप हुआ जाता है इसका कारण यह है कि जो ज्योतिषी लोग इस विद्याको जानते हैं वे दूसरे को नहीं बतलाते हैं फुल भटका अर्थमात्र पढा देते हैं इस शासका गूढ लक्ष्य नहीं समझाते हैं, यह शास्त्र गुरु लक्ष्य कहाता है जब उन विद्या थिपको इसका लक्ष्य नहीं मालूम हुआ तो उनका फलादेश का ठीक मिलगा इसी सबबसे इस शाखकी और पण्डितलोगोंकी निंदा होने लगी; ऐसी व्यवस्था देखकर मुझको सोच पैदा हुआ कि हमारे बामण भाइयों का अपमान न हो और इस शास्त्र का प्रकाश पहलेकी तरह किस तरह

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