अष्टकवर्ग सिद्धांत एवं प्रयोग दिग्दर्शक के.एन. राव [ AP]

₹115.00
availability: In Stock

  • Colour
  • Size

Description

प्रस्तावना

गोचरग्रहवशान्मनुजानां यच्छुभाशुभफलाभ्युपलब्य। अष्टवर्ग इति यो महदुक्तस्ततासाधनमिहाभिदधेऽहम्।।१।।

हमारे प्राचीन ऋषियों ने भचक्र के विभिन्न राशियों में ग्रहों के गोचर के प्रभाव को जानने के लिए अष्टकवर्ग पद्धति की उपयोगिता पर बहुत कुछ कहा है। ज्योतिष के प्राचीन शास्त्रीय ग्रंथ फलदीपिका में ऐसा लिखा है।

पराशर होराशास्त्र में भी इस पद्धति के महत्व को रेखांकित किया गया है और जनकल्याण की भावना से इसका वर्णन किया गया है।

अष्टक' का शाब्दिक अर्थ है आठ। आठ यानी लग्न और सात ग्रह। ये ग्रह हर समय गोचर करते है और एक-दूसरे के सापेक्ष स्थिति परिवर्तन करते हैं। इसमें कुछ स्थिति को शुभ व कुछ स्थिति को अशुभ माना जाता है। अष्टकवर्ग पद्धति में ऐसे सिद्धांतों का विस्तार से वर्णन है जिसमें यह देखा

जाता है कि कौन सा ग्रह कब गोचर में शुभ फल देता है और कब अशुभ फल अष्टकवर्ग ग्रहों की दशा/अन्तर्दशा में फल जानने में बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह स्वयं सिद्ध हो गया है कि उच्च का ग्रह भी अपनी दशा मैं कभी-कभी अच्छे फल नहीं दे पाता है अगर वह अच्छे शुभ बिन्दुओं के साथ न हो। इसके विपरीत अगर एक ग्रह अपने अष्टकवर्ग में बिन्दुरहित राशि में गोचर कर रहा हो तो बहुत खराब फल देता है। यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ग्रह के उच्च की स्थिति में, अपनी राशि, केन्द्र, त्रिकोण, उपचय स्थान में या शुभ वर्गों में मजबूत स्थिति में होने से भी विशेष अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता अगर वह 25 से कम बिन्दु के साथ हो।

Reviews

No reviews have been written for this product.

Write your own review

Opps

Sorry, it looks like some products are not available in selected quantity.

OK