पितृदोष PEERA MUKTI

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Description

लेखकीय

हाँ, पितर होते हैं

यदि हम पितरों को मानते हैं, तो पितृदोष को भी स्वीकार करना पड़ेगा। पितरों की मान्यता नई नहीं है। वैदिककाल से ही पितरों की पूजा अर्चना और पत्र की परम्परा रही है। वैदिक युग के पक्षात् पौराणिक काल में पितरों की उपासना की परम्परा बढ़ी है और इससे सम्बन्धित नये तथ्य हिन्दू संस्कृति में समावेशित हुए हैं जब हम पितरों के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, तो ऐसी स्थिति में पितृदोष कोरी कल्पना कैसे हो सकता है? पितृदोष से तात्पर्य होता है, पितरों को असन्तुष्टि से अर्थात पितर संतुष्ट भौर अप्रसा होंगे, तो अपने परिजनों को कष्ट एवं पीड़ा देंगे अधया उनके अहित की परिस्थितियां निर्मित करेंगे, यही पितृदोष है।

पितृदोष क्यों होता है, इससे क्या नुकसान हो सकता है, पितृदोष निवारण हेतु किस प्रकार के उपाय करने चाहिये, ऐसे प्रक्षों के उत्तर इस पुस्तक में आपको मिलेंगे। पितृदोष और इसके प्रभाव को स्पष्ट करने के लिये अनेक उदाहरण बताये गये हैं, जो किसी न किसी रूप से लोगों की परेशानी का कारण बने हुए थे। इन कारणों को पढ़ लेने के बाद आपको स्पष्ट हो जायेगा कि आखिर पितृदोष इतना कष्टकारक क्यों होता है? पितृदोष : पीड़ा मुक्ति के उपाय पुस्तक के लेखन के दौरान मेरी मुलाकात पितृदोष

से अनेक व्यक्तियों के साथ-साथ ऐसे अनेक विद्वानों से भी हुई जिनके कारण मैं पितरों के वास्तविक स्वरूप को समझ पाया। अपनी पूर्व प्रकाशित पुस्तक ऊपरी बाधा : पीड़ा मुक्ति के दुर्लभ उपाय में पितृदोष और पितरों से सम्बन्धित संक्षिप्त वर्णन को लिखने के पक्षात् में इस विषय को गहनता के साथ समझना चाहता था। पितरों के स्वरूप को लेकर भी मन में अनेक प्रश्न थे। ऊपरी बाधा.. पुस्तक के विषयों पर चर्चा के सम्बन्ध में एक दिन जब मेरो बारा देवकुमार कोराडी जो से हो रही थी, तो उन्होंने मुझे बताया कि उपरोक्त पुस्तक में जो पितरों के लिये उशिक्षित किया है, यह अच्छा है, परन्तु उसमें पूर्णता नहीं है, विशेष रूप से फितरों के स्वरूप से सम्बन्धित तथ्य नहीं हैं। कौराड़ जी ज्योतिष और अध्यात्म विषय के परम विधान हैं, जो श्रीविद्या साधक होने के साथ हो मेरे आध्यात्मिक गुरु श्रीमदण्डी स्वामी जोगेन्द्राश्रम जी के गुरु भाई भी हैं। किराड़ जौ ने मुझे इस बात के लिये प्रोत्साहित किया कि मैं शीघ्र ही पितृदोष और पितरों से सम्बन्धित ऐसी पुस्तक का लेखन करे, जिसे पितरों और उनको असन्तुष्टि से उत्पात पितृदोष को पाठक पूर्ण रूप से समझ सकें कौराडू जो द्वारा दी गई प्रारम्भिक जानकारी से मैंने इस विषय पर गहन चिन्तन प्रारम्भ किया। मैंने इस पुस्तक के लेखन की चर्चा इस विषय के अनेक विद्वानों में की तो उन्होनि मुझे प्रौसाहित करते हुए लेखन का परामर्श दिया। सपशी उनाने प्रत्येक सम्भव सहयोग भी प्रदान किया। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि इस पुस्तक के लेखन में अनेक विद्वानों ने मेरा न केवल मार्गदर्शन किया अपितु पूर्ण सहयोग भी दिया।

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