लघु पाराशरी (विदाथरी हिन्दी व्याख्या सहित)

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[16:35, 10/8/2020] Raahul Lakhera: दो शब्द

लघु पाराशरी हमारी उस प्राचीन प्रतिपादन शैली का एक उत्कृष्ट व अनूठा नमूना है जिसके दर्शन हमें संस्कृत के सूत्र कारिका संग्रह आदि पद्धति से रचित ग्रन्थों में होते हैं। जिस प्रकार पाणिनीय व्याकरण में प्रवेश पाने के लिए लघु सिद्धान्त कौमुदी के महत्त्व को सभी जानते हैं, उसी प्रकार फलित ज्योतिष के मेरे अध्ययन की ओर अग्रसर जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक मुख्य

प्रवेश द्वार है।

यही कारण है कि सुदीर्घ काल से यह फलित ज्योतिष के पठन-पाठन में अपना अक्षुण्ण स्थान बनाए हुए है। सुकुमार पति छात्रों से लेकर भाई-बड़े विद्वानों तक के मन को हर लेने वाली इस लघु पाराशरी को जहां अक्षय यश मिला, वहीं पर इसके रचयिता के विषय में निश्चय से कुछ कह पाना सम्भव नहीं है।

विराट को अणु परमाणु में समेटने व उसे अन्तश्चेतना में प्रत्यक्ष करने की शक्ति से प्राचीन भारतीय मनीषियों ने भगवद्गीता, दुर्गा सप्तशती, भागवत जैसे बृहद् ग्रन्थों को जिस प्रकार से सात-सात या चार श्लोकों में समेटा है उसी प्रकार पाराशर सिद्धान्तों को यहाँ केवल 42 श्लोकों में समेट दिया गया है संक्षिप्तीकरण का यह एक श्रेष्ठतम नमूना है।

सम्पूर्ण पाराशर मत का इन 42 श्लोकों में जो नवनीत प्रस्तुत किया गया है वह वास्तव में ज्योतिष में प्रवेश चाहने वाले पाठकों के लिए पुष्टि-पुष्टि व तुष्टि प्रदान करने वाला है।
[16:35, 10/8/2020] Raahul Lakhera: विषय सूची

1. संज्ञा अध्याय

मंगलाचरण, अनुबन्ध चतुष्टय, विंशोत्तरी की महत्ता, दशा साधन, दशा का भुक्त-भोग्य निकालना. ग्रहों की दृष्टि। 2. फलनिर्णयाध्यायः

21 त्रिकोण की शुभता, केन्द्र व त्रिपडायेशों के स्वामियों की व्यवस्था, द्वितीयेश व द्वादशेश का शुभाशुभत्व, परसाहचर्य व् स्थानान्तरानुगुण्य का सिद्धान्त, अष्टमेश सम्बन्धी विशेष नियम, केन्द्राधिपत्य दोष के नियम, शुभ ग्रहों में उत्तरोत्तर अधिक केन्द्रक दोष, मारकत्व निर्णय, गुरु व शुक्र का कारकत्व, बुद्धि ग्रहों की व्यवस्था. सूर्य व चन्द्र का विशेष नियम, ग्रहों का योग कारकत्व, राहु केतु का शुभाशुभ निर्णय, कारक व कारक राहु केतु उदाहरण। 3. योगफलाध्यायः

50 ग्रहों के शुभफलदायक योग, केन्द्र-त्रिकोण सम्बन्ध ग्रहों का चार प्रकार का सम्बन्ध, अन्य प्रकार से योगकारक ग्रह का निर्णय, शुभाशुभ भावों के एक स्वामी का फल तारतम्य, दोषयुक्त केन्द्र-त्रिकोणेश भी योगकारक, केन्द्रेश के दोय, त्रिकोणेश के दोष, योगकारकता का स्पष्टीकरण, सर्वोत्तम राजयोग, उदाहरणों से तथ्यों को पुष्टि, दशा व उसके फल का नियम, दो बली अन्तर्दशाओं के बीच सम्बन्ध होने पर भी निष्फलता का उदाहरण, योगकारक ग्रहों को निर्बल दशा भी योगदान, अन्य श्रेष्ठ योग, राहु केतु का योग कारकत्व, राजयोग भंग

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